विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में कुछ राजनेताओं ने अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए बहुत निम्न स्तर के व्यवहार शुरू कर दिए हैं जिसे देखकर ऐसा लगता है कि इन नेताओं को किसी पर विश्वास नहीं है। पंजाब में आम आदमी पार्टी के ही विधायक को उनकी ही सरकार की पुलिस ने बलात्कार के एक मामले में गिरफ्तार किया तो विधायक के साथी गुंडों ने पुलिस दल पर हमला करते हुए उन्हें छुड़ा ले गए। इस प्रकार की घटनाएं केवल फिल्मों में ही नहीं बल्कि देश की राजनीति में सूचित ले कर आने का दम भरने वाले कर रहे हैं।
अधिकांश राजनैतिक दलों के पास देश के लिए कोई विचार नहीं है, चुनाव में विपक्षी नेताओं और विशेषकर बड़े संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों या फिर संस्थाओं पर ऐसे हमले हो रहे हैं कि सामान्य शिष्टाचार की मर्यादाएं भी दूर दूर तक दिखाई नहीं देती हैं। लोक तंत्र में लोक शब्द अधिक महत्व का है क्यों कि यही लोक ही हैं जो ऐसे नेताओं को या फिर उनके विचार का पोषण करते हैं। स्वयं ही देश की आजादी दिलाने का श्रेय लेने वाली पार्टी किसी प्रकार के विदेशी आक्रमण के समय सबसे मुखर होकर विदेशियों का पक्ष लेती दिखाई देती है।
जिनपर भ्रष्टाचार के बड़े आरोप सिद्ध हो चुके हैं और सजा याफ़्ता है वे या उनके नाम पर सत्ता चलाकर उनकी संताने किस प्रकार लोकतंत्र का संरक्षण कर सकती है और शासन की सुचिता स्थापित कर सकती हैं? वैचारिक मतभिन्नताएं रहते हुए भी लोकतंत्र में यह जागृति अवश्य रहनी चाहिए अन्यथा लोकतंत्र में तंत्र तो रहेगा लोक भी रहेगा लेकिन लोक निष्प्रभावी रहेगा और तंत्र प्रभावी बनता चला जाएगा।
अभिषेक राष्ट्रवादी
शामली



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