लोकप्रिय कवयित्री एवं शायरा
पुष्पा गंगवार "पूनम" जी

डूबते वक्त निगाहों ने ये मंज़र देखा,

हर किसी शख़्स की आँखों में बसा डर  देखा।


आप आंकोगे भला क्या कि हुनर है कितना,

हमने ख़ुद को न कभी आप से  कमतर देखा।


राह ऐसी कि कहीं दूर नहीं थी मंज़िल,

हमसफ़र साथ न था और न रहबर देखा।


ये अजब बात कहीं घास का भी नाम नहीं 

खेत पहले न कभी आज सा बंजर देखा।


ग़म वो औरों के बड़े शौक से पी जाता है,

इस ज़माने में छुपा आज का शंकर देखा।


शहर में फूलों का ख़रीदार नहीं दूर तलक 

जिसको देखो है उसे ढूँढता खंजर देखा।


क्यों यहां सूख रहे हैं ये शजर बेचारे,

शहर घूमा तो घुटी सांस लिए नर  देखा।


पुष्पा गंगवार ”पूनम” जी

बरेली उत्तर प्रदेश 



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