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🙏 जय श्री राधे कृष्ण🙏 


मित्रों आज का ये श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता के बारहवें अध्याय 'भक्ति योग' का अंतिम श्लोक है ...

ये तु धर्म्यामृतमिदं यथोक्तं पर्युपासते ।

श्रद्दधाना मत्परमा भक्तास्तेऽतीव मे प्रियाः ॥

(अध्याय 12, श्लोक 20)


इस श्लोक का भावार्थ : परन्तु जो श्रद्धायुक्त (वेद, शास्त्र, महात्मा और गुरुजनों के तथा परमेश्वर के वचनों में प्रत्यक्ष के सदृश विश्वास का नाम 'श्रद्धा' है) पुरुष मेरे परायण होकर इस ऊपर कहे हुए धर्ममय अमृत को निष्काम प्रेमभाव से सेवन करते हैं, वे भक्त मुझको अतिशय प्रिय हैं। 


शुभ रविवार!  


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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