माता भवानी शैलपुत्री आ गए तेरी शरण।

कोटि नमन करते तुझे हैं कर रहे सब पूजणम।

🙏🏼

हैं रुप दूजा  शील धारिणी और हैं ब्रह्मचारिणी ।

हैं कहाँ तुम सा जगत में कोई धीरज धारिणी।

🙏🏼

चंद्रघंटा चंद्र रूपा  है अति मन भावणी।

सज रही माँ शस्त्रों से है हैं जगत की तारिणी।

🙏🏼

है रचयिता सृष्टि की ये रोग दोष  विनाशिणी ।

चौथा रूप है कूष्माण्डा भक्तों की दुःख हारिणी।

🙏🏼

पद्मासन में बैठी माता पुष्प कमल विराजिनी ।

कार्तिकेय गोदी विराजे स्कंदमाता सुवासिनी।

🙏🏼

आदि शक्ति की परछाई तप से जन्मी कात्यायनी।

महिषासुर को मार कर ही जो बनी पाप नासिनी।

🙏🏼

देती माता जो भी वर है वो नही जाता  खाली।

सातवें दिन कालरात्रि पूजी जाती महाकाली ।

🙏🏼

मन से भोली स्वेत वस्त्र मे सजती है महागौरी।

आठवां है रूप माँ का लगती है सबको प्यारी।

🙏🏼

नौवा रूप है सिद्धिदात्री है बड़ी ही कल्याणी।

इनसे बड़ कर दूजा जग में है नही कोई दानी ।

🙏🏼

हैं ये सागर" करुणा" की जिसका किया वर्णन अभी।

हो गया हो गलती कोई तो माफी मांगती है "कली" ।

🙏🏼

रूप दुर्गा में जग समाया है इन्हीं से ये धरा ।

वंदना करती है" कलिका "खुश रहे ये वसुंधरा। 

🙏🏼


रचनाकार करुणा कलिका जी
बोकारो स्टील सिटी (झारखंड)

(विज्ञापन)


Share To:

Post A Comment: