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🙏राधे राधे 🙏

आप सभी को प्रणाम मित्रों !

मित्रों आज का श्लोक भी मैंने  श्रीमद्भगवद्गीता के छठे अध्याय 'आत्मसंयम  योग' से ही लिया है।

प्रशान्तमनसं ह्येनं योगिनं सुखमुत्तमम्।
उपैति शान्तरजसं ब्रह्मभूतमकल्मषम्॥
(अध्याय 6, श्लोक 27)

इस श्लोक का अर्थ है : (भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं) क्योंकि जिसका मन सम्यक् रूप से शांत है, जो पाप से रहित है और जिसका रजोगुण शांत हो गया है, ऐसा योगी  ब्रह्म के साथ एकत्व अनुभव कर उत्तम आनंद को प्राप्त होता है।

आपका दिन शुभ हो !

पुनीत कृष्णा 
ग़ाज़ियाबाद
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