कर्नाटक में कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार द्वारा राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की गतिविधियों — विशेष रूप से पथ संचलन (Route March) और सरकारी कर्मचारियों की भागीदारी — पर रोक लगाने का निर्णय राज्य को एक नए वैचारिक टकराव की ओर ले गया है।
यह निर्णय केवल प्रशासनिक आदेश नहीं, बल्कि राष्ट्र-निष्ठा बनाम सत्ता-राजनीति की बहस को पुनर्जीवित करता है।
🔹️ कांग्रेस की वोटबैंक राजनीति और समाज विभाजन
कर्नाटक में कांग्रेस की राजनीति की जड़ें स्पष्ट हैं — वोटबैंक राजनीति द्वारा समाज को बाँटना।
सरल शब्दों में, कांग्रेस जानती है कि सनातन हिंदू समुदाय को एकजुट करके निशाना बनाना मुश्किल है, इसलिए वे “बाँटो और राज करो” की नीति अपनाती हैं।बुद्ध और अंबेडकर के नाम का राजनीतिक प्रयोग वर्षों से दलित और पिछड़े वर्गों को लुभाने के लिए होता रहा है। परंतु इस रणनीति के तहत, बुद्ध को विष्णु का अवतार मानने वाले हिन्दू समाज को ‘रूढ़िवादी’ जैसे खिताब से विभाजित कर दिया जाता है।
इसी तरह अंबेडकर को संविधान का पिता बताते हुए संघ को विरोधी और दुश्मन के रूप में स्थापित किया जाता है।यह रणनीति लोकतंत्र के मूल सिद्घांतों के विरुद्ध जाकर समाज में अंतर्विरोध पैदा करती है और राष्ट्रीय एकता को कमजोर करती है।
🔹️ विवाद की पृष्ठभूमि: -
▪️ पहला, कर्नाटक कैबिनेट ने आदेश दिया कि सरकारी स्कूल, कॉलेज या कार्यालयों में आरएसएस या किसी संगठन की बिना अनुमति गतिविधियाँ नहीं होंगी। इससे संघ की शाखाओं और सामाजिक कार्यक्रमों पर अप्रत्यक्ष रोक लग गई।
▪️ दूसरा, कलबुर्गी जिले के चित्तपुर में आरएसएस के प्रस्तावित पथ संचलन की अनुमति प्रशासन ने कानून-व्यवस्था भंग होने की आशंका का हवाला देते हुए अस्वीकार कर दी।
▪️ तीसरा, एक पंचायत विकास अधिकारी को निलंबित कर दिया गया और मंत्री प्रियांक खरगे ने चेताया कि सरकारी कर्मचारी किसी “सांप्रदायिक संगठन” से जुड़ी गतिविधियों में भाग न लें।
▪️ चौथा, आरएसएस ने इस निर्णय को न्यायिक चुनौती दी। कर्नाटक उच्च न्यायालय की गुलबर्गा पीठ ने टिप्पणी की :-
संविधान नागरिकों को संगठन की स्वतंत्रता देता है। प्रशासन का कार्य कानून-व्यवस्था बनाए रखना है, स्वतंत्र नागरिक अधिकारों का दमन नहीं।
इस टिप्पणी ने सरकार की नीयत पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिया।
🔹️ कांग्रेस की परंपरागत भूल : प्रतिबंध से सशक्त होता संघ: -
भारतीय राजनीति के इतिहास में यह सिद्ध हो चुका है कि जब-जब कांग्रेस ने संघ को सीमित करने की कोशिश की, वह और अधिक संगठित और स्वीकार्य बनकर उभरा।
▪️ पहली बार, 1948 में गांधीजी की हत्या के बाद नेहरू सरकार ने संघ पर प्रतिबंध लगाया। प्रत्यक्ष साक्ष्य न होते हुए भी यह निर्णय राजनीतिक दबाव में लिया गया। न्यायालय से निर्दोष सिद्ध होने के बाद 1949 में प्रतिबंध हटा।
▪️ दूसरी बार, 1975 के आपातकाल में इंदिरा गांधी द्वारा प्रतिबंध लगाया गया। संघ कार्यकर्ता लोकतंत्र बचाने के लिए जेलों में गए और यह काल संघ को “लोकतांत्रिक आत्मा” का प्रतीक बना गया।
▪️ तीसरी बार, 1992–93 में बाबरी घटना के बाद नरसिंह राव सरकार ने वही गलती दोहराई। कुछ माह में ही यह प्रतिबंध भी न्यायालय द्वारा निरस्त कर दिया गया।
इतिहास बताता है : संघ पर प्रहार, उसकी जड़ों को और गहराई देता है, क्योंकि संघ का बल सत्ता से नहीं, समाज से आता है।
🔸️ राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ : विचार नहीं, व्यवहार है: -
संघ कोई राजनीतिक संगठन नहीं, बल्कि राष्ट्र का आचार्य है।
विश्व का सबसे बड़ा स्वैच्छिक संगठन होने के नाते इसके करोड़ों स्वयंसेवक प्रतिदिन शाखाओं, सेवा परियोजनाओं, शिक्षा, ग्राम विकास, पर्यावरण, स्वास्थ्य और सामाजिक समरसता के कार्यों में जुटे हैं।
इसका सम्पूर्ण कार्य तीन स्तंभों पर आधारित है : -
• राष्ट्र सर्वोपरि का भाव
• निःस्वार्थ सेवा का अभ्यास
• संघटन द्वारा समाज परिवर्तन
संघ किसी व्यक्ति का नहीं, राष्ट्र का संगठन है।
यहाँ भगवा ध्वज ही गुरु है — त्याग, तपस्या और एकता का प्रतीक।
🔸️ संघ की ऐतिहासिक भूमिका : जब राष्ट्र को संघ की आवश्यकता पड़ी: -
संघ का इतिहास केवल विचार का नहीं, बल्कि राष्ट्र रक्षा और पुनर्निर्माण की प्रत्यक्ष भूमिका का साक्षी है —
• 1947–48 में जम्मू-कश्मीर में भारत के साथ एकीकरण के समय संघ के स्वयंसेवक सीमाओं पर पहुँचे। वे सैनिकों के साथ राशन, कपड़े, खच्चर और रसद पहुँचाने का कार्य करते रहे। कई स्वयंसेवक गोलीबारी के बीच भी मोर्चे पर टिके रहे।
• गोवा की मुक्ति (1961) में संघ के स्वयंसेवक भूमिगत संगठन बनाकर सूचना व रणनीति में सहयोगी रहे। कई स्वयंसेवक गिरफ्तार हुए, किंतु पीछे नहीं हटे।
• 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धों के दौरान संघ स्वयंसेवकों ने रक्तदान, राहत सामग्री एकत्रीकरण और सीमा सहायता के कार्य किए। स्वयं प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री जी ने युद्धकाल में दिल्ली के यातायात नियंत्रण की जिम्मेदारी संघ को सौंपी थी — जिसे स्वयंसेवकों ने अद्भुत अनुशासन से निभाया।
• गुजरात, केरल, जम्मू-कश्मीर से लेकर कोविड महामारी तक, हर आपदा में स्वयंसेवक बिना भेदभाव के सहायता हेतु अग्रणी रहे।
संघ की सेवा लोभ या प्रचार से नहीं, कर्तव्य और राष्ट्रभाव से प्रेरित होती है।
🔸️ सेवा ही संघ का स्वभाव: -
संघ सेवा को केवल दान नहीं, राष्ट्र धर्म मानता है।
हर शाखा, हर स्वयंसेवक का उद्देश्य समाज में सज्जनता, अनुशासन और आत्मगौरव का संस्कार फैलाना है।
👉 संघ मानता है कि राष्ट्र सेवा का कोई अवकाश नहीं होता।
🔸️ संघ और सरकार : सहयोग नहीं, बाधा भी नहीं: -
संघ का दृष्टिकोण सदैव स्पष्ट रहा है। संघ सरकार से सहयोग की अपेक्षा नहीं करता, पर सरकार बाधा भी न बने।
- संघ प्रशासन या राजनीति का विरोधी नहीं, बल्कि समाज की जागरूकता का संवाहक है।
- वह सत्ता से संघर्ष नहीं करता, बल्कि उसे राष्ट्रहित की दिशा दिखाने का प्रयास करता है।
🔹️ कांग्रेस के लिए राजनीतिक अभिशाप क्यों?
• संघ के प्रति वैचारिक कठोरता कांग्रेस को “हिन्दू विरोधी राजनीति” की छवि में बाँधती है।
• उच्च न्यायालय की टिप्पणी ने उसकी नीतिगत विश्वसनीयता को कमजोर किया।
• समाज यह देख रहा है कि जो संगठन सेवा में जुटा है, उसी पर कार्रवाई हो रही है — यह सहानुभूति का केंद्र संघ को बनाता है।
• इतिहास का हर अध्याय बताता है — संघ का विरोध, अंततः कांग्रेस के विरुद्ध सामाजिक प्रतिक्रिया बनकर लौटता है।
वर्तमान कर्नाटक सरकार की बयानबाजी, जैसे मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का ‘सनातनियों की संगत से बचो’ जैसे कड़े शब्दों का प्रयोग, समुदाय में विघटनकारी राजनीति को बढ़ावा देता है।
👉 कांग्रेस ने बुद्ध, बसावा, और अंबेडकर जैसे धर्म-सामाजिक नेताओं के नाम लेकर हिंदू समाज में मतभेद उत्पन्न करने का प्रयास किया है, जिससे सामाजिक समरसता और राष्ट्रीय एकता पर सवाल उठते हैं।
🔸️ संघ शताब्दी वर्ष और पंच परिवर्तन का युग: -
संघ का शताब्दी वर्ष (2025–26) केवल उत्सव नहीं, संकल्प युग है।
इस वर्ष संघ ने “पंच परिवर्तन” के रूप में समाज को स्वावलंबन, संस्कार और समरसता की दिशा में आगे बढ़ाने का लक्ष्य रखा है।
• स्व आधारित जीवन शैली : आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ना।
• कुटुम्ब प्रबोधन : परिवार को संस्कार केंद्र बनाना।
• सामाजिक समरसता : जाति, वर्ग, भाषा से ऊपर उठकर एक भाव बनाना।
• नागरिक कर्तव्य : राष्ट्र के प्रति उत्तरदायित्व जागृत करना।
• पर्यावरण संरक्षण : प्रकृति के प्रति संवेदना और संतुलन का भाव जगाना।
👉 यह पंच परिवर्तन किसी दल या व्यक्ति के लिए नहीं, बल्कि “स्व से प्रारंभ होकर विश्व कल्याण” तक की यात्रा है।
🔸️ संघ की शक्ति : संस्कृति में निहित, राजनीति में नहीं
संघ मानता है :-
संघ व्यक्ति का नहीं, विचार का है; राष्ट्र सर्वोपरि है, बाकी सब साधन हैं।
उसकी शक्ति संस्कृति, सेवा और संगठन से आती है, न कि सत्ता से। हर स्वयंसेवक का जीवन सूत्र है :-
न लोभ, न लाभ – केवल राष्ट्र के लिए कर्म।
🔸️ भविष्य की दिशा : टकराव नहीं, संवाद: -
आज आवश्यकता टकराव की नहीं, संवाद की है। राज्य सरकारों को समझना चाहिए कि राष्ट्र निर्माण में लगे संगठनों को सीमाओं से नहीं, सहयोग से बल मिलता है। संघ सरकार से सहयोग की अपेक्षा नहीं करता — पर बाधा भी उत्पन्न न करे, यह न्यूनतम अपेक्षा है।
👉 भारत की शक्ति उसकी विविधता और सेवा-संस्कार में निहित है, और संघ उसी आत्मा का जीवंत प्रतीक है।
कर्नाटक का यह विवाद केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि यह प्रश्न है कि — क्या सरकारें राष्ट्रभावना से ऊपर हैं?
संघ का विरोध वास्तव में उस भारत-भाव का विरोध है जो सबको जोड़ता है।
संघ को दबाया नहीं जा सकता, क्योंकि वह न व्यक्ति है, न दल। वह भारत की आत्मा का सजीव संगठन है।
संघ का शाश्वत पथ: -
न रोक सके कोई मार्ग हवा का,
संघ तो चलन धरा का है।
ना सत्ता दे, ना सत्ता ले,
वह तो प्रण राष्ट्रभरा का है।
जब-जब रोका गया विचार,
और गहराई तक समाया है।
वह गीत नहीं, वह प्रतिध्वनि है,
जो युगों से गूंज आया है।
सेवा उसका कर्म सदा,
संघटन उसका मंत्र रहे।
सत्ता चाहे रुख मोड़े,
पर ध्वज सदा धरा पर अडिग रहे।
ध्यानार्थ :-
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अनुमति न देने वाली संघ–विरोधी कांग्रेस सरकार को दिया झटका - चित्तपूर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 2 नवंबर की शोभायात्रा को मिली न्यायालय से अनुमति।




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