पटना, 23 अगस्त: सुप्रसिद्ध अंग्रेजी साहित्यकार, लेखक, समाजसेवी और ब्रिटिश लिंगुआ के संस्थापक डॉ. बीरबल झा ने पटना स्थित श्री अरविंद महिला महाविद्यालय की छात्राओं को “करियर संभावनाएं और रोजगार-योग्यता कौशल” विषयक संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित किया। यह कार्यक्रम उनके राष्ट्रीय अभियान “राइज़ एंड स्पीक अप फॉर इंडिया” के अंतर्गत हुआ, जो विकसित भारत @ 2047 की परिकल्पना से जुड़ा है। इस पहल की शुरुआत उन्होंने बिहार से की है, जिसका उद्देश्य युवाओं को रोजगार योग्य बनाना है।

अपने प्रेरक संबोधन में राष्ट्रवादी विचारक डॉ. झा ने कहा कि सफल जीवन, चाहे पेशेवर हो या व्यक्तिगत, उसकी नींव संचार कौशल है। उन्होंने जोर देते हुए कहा— “डिग्री आपको शॉर्टलिस्ट करा सकती है, लेकिन सिलेक्शन दिलाने का काम आपका कम्युनिकेशन करता है।” इस पर सभागार तालियों से गूंज उठा।

‘यंगेस्ट लिविंग लीजेंड ऑफ मिथिला’ के नाम से चर्चित डॉ. झा ने छात्राओं को याद दिलाया कि आज के समय में रोजगार-योग्यता केवल अकादमिक डिग्रियों से तय नहीं होती। उन्होंने कहा— “डिग्रियां आपको पढ़ा-लिखा बनाती हैं, लेकिन कौशल ही आपको रोजगार योग्य बनाते हैं।” उन्होंने संचार, टीमवर्क, अनुकूलनशीलता, समस्या-समाधान और नैतिकता के महत्व को रेखांकित किया।

उन्होंने समझाया कि अच्छा संचार “सम्मानजनक नौकरियों” की सीढ़ी है, जो गरिमा, इज्ज़त और विकास सुनिश्चित करता है। “रोजगार-योग्यता केवल नौकरी पाने का नाम नहीं है, बल्कि यह सम्मान, आत्मसम्मान और समाज में अपनी आवाज़ पाने का माध्यम है,” उन्होंने कहा।

करियर संभावनाओं की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि सिविल सेवा, कॉरपोरेट, शिक्षा जगत, मीडिया, कानून, स्वास्थ्य, उद्यमिता और अंतरराष्ट्रीय अवसरों तक में संचार निर्णायक भूमिका निभाता है। उन्होंने कहा— “यदि ज्ञान पॉवर  है, तो कम्युनिकेशन वह स्विच है जो उस पॉवर को चालू करता है।”

विशेषकर छात्राओं को संबोधित करते हुए डॉ. झा ने कहा— “जब कोई युवती अपनी आवाज़ उठाती है, तो वह अपनी आज़ादी पाती है। जब वह स्पष्टता से बोलती है, तो सम्मान अर्जित करती है। और जब वह संचार के माध्यम से रोजगार-योग्यता अर्जित करती है, तो वह न केवल अपना भविष्य सुरक्षित करती है, बल्कि अपने परिवार और समाज को भी सशक्त बनाती है।”

उन्होंने कहा कि संचार को केवल भाषा-दक्षता तक सीमित न समझें। “शब्द केवल ध्वनियां नहीं हैं — वे आपके पंख हैं। इन्हीं से आप बाधाओं के पार उड़ सकती हैं और अपने भाग्य तक पहुँच सकती हैं।”

डॉ. झा ने कहा— “अंग्रेज़ी सीखने का अर्थ पाश्चात्य संस्कृति अपनाना नहीं है; इसका अर्थ है रोजगार योग्य कौशल को निखारना और अंग्रेज़ी के माध्यम से मिलने वाले अवसरों का लाभ उठाना।” उन्होंने याद दिलाया कि 1993 से ही वे भारत में अंग्रेज़ी प्रशिक्षण में क्रांति लाने और स्पोकन इंग्लिश कौशल को परिभाषित करने का कार्य कर रहे हैं।

नैतिकता पर जोर देते हुए उन्होंने चेताया— “नैतिकता के बिना रोजगार-योग्यता ऐसा है जैसे आत्मा के बिना शरीर। आपकी प्रतिभा आपको नौकरी दिला सकती है, लेकिन केवल आपके मूल्य ही आपको सम्मानित और टिकाऊ बनाए रखेंगे।”

उन्होंने युवाओं से बदलते समय की चुनौतियों के लिए तैयार रहने का आह्वान किया। “हमारे देश के युवाओं में प्रतिभा की कमी नहीं है; कमी है आत्मविश्वास और संचार की। आइए इस खाई को पाटें।”

छात्राओं को प्रेरित करते हुए उन्होंने कहा— “सिर्फ इंटरव्यू की तैयारी मत करो, जीवन की तैयारी करो।” उन्होंने आगे कहा— “युवक-युवतियां केवल भारत का भविष्य नहीं हैं — वे आज के भारत की ताकत हैं। यदि वे आज उठ खड़े होते हैं, तो राष्ट्र कल उठेगा।”

कार्यक्रम का समापन छात्राओं द्वारा यह संकल्प लेने के साथ हुआ कि वे अपने रोजगार योग्य कौशल को निखारेंगी और एक कुशल, नैतिक और रोजगार-योग्य भारत का हिस्सा बनेंगी।

अपने मार्गदर्शक सूत्र को दोहराते हुए डॉ. झा ने कहा— “जीविका के लिए भाषा, पहचान के लिए संस्कृति और समाज के लिए नैतिकता।”

अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संस्थान ब्रिटिश लिंगुआ के माध्यम से डॉ. बीरबल झा शिक्षा और रोजगार के बीच की खाई को पाटने और भारत के युवाओं को उज्ज्वल कल के लिए तैयार करने के मिशन में निरंतर जुटे हुए हैं।



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