वृन्दावन : बृजेश श्रीवास्तव। महाराज प्रेमानंद महाराज के पांच शिष्य हर पल उनकी परछाई बनकर साथ​ चलते हैं। इन्हें पांच पांडव कहा जाता है। इनमें से कोई सेना में अ​धिकारी था, कोई प्रोफेसर, कोई बिजनेसमैन तो कोई फाइटर। मिलने के बाद सभी को गुरुजी ने इतना प्रभावित किया कि वह सभी सांसारिक जीवन छोड़कर गुरु की शरण में आ गए। 

वृंदावन के श्री हित राधा केली कुंज आश्रम में यह पांचों ​हरदम प्रेमानंद महाराज के इर्द-गिर्द साए की तरह रहते हैं। प्रेमानंद का असली नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे है। वह राधा वल्लभ संप्रदाय के एक प्रसिद्ध संत हैं। 1969 में उत्तर प्रदेश के कानपुर के सर्सौल ब्लॉक के अखरी गांव में जन्मे उन्होंने 13 साल की उम्र में घर छोड़कर सन्यास ले लिया था। वाराणसी में गंगा के तट पर ध्यान और तपस्या के बाद वह वृंदावन पहुंचे। जहां गौरांगी शरण महाराज (बड़े गुरुजी) ने उन्हें राधा वल्लभ संप्रदाय में दीक्षा दी। आज उनकी लोकप्रियता दुनिया भर में फैल चुकी है। उनके 11.1 मिलियन इंस्टाग्राम फॉलोअर्स और 7.88 मिलियन यूट्यूब सब्सक्राइबर्स इसका प्रमाण हैं। महाराज का प्रभाव इतना अधिक है कि एक बार कोई उनसे मिल ले तो फिर वो शराब और नॉनवेज से दूर हो जाता है। उनकी इस आध्यात्मिक यात्रा में उनके पांच शिष्यों की कहानी भी अत्यंत प्रेरणादायक है।

इन पांचों पांडव में से एक हैं बाबा नवल नगरी, जो कभी भारतीय सेना में अफसर थे। पठानकोट, पंजाब के एक सैन्य परिवार से ताल्लुक रखने वाले नवल ने 2008 से 2017 तक सेना में सेवा दी। उनके पिता भी सेना में थे। 2016 में कारगिल में तैनाती के दौरान वह वृंदावन आए और प्रेमानंद महाराज के सत्संग में शामिल हुए। इस अनुभव ने उनके जीवन को बदल दिया। 2017 में उन्होंने सेना की नौकरी छोड़ दी और महाराज के शिष्य बन गए। आज वह श्री हित राधा केली कुंज आश्रम में उनकी सेवा करते हैं और उनके सबसे करीबी अनुयायियों में से एक हैं।

दूसरे शिष्य महामधुरी बाबा मूल रूप से यूपी के पीलीभीत के रहने वाले हैं। वह असिस्टेंट प्रोफ़ेसर थे। वह अपने भाई के साथ महाराज से मिलने आए तो उनसे प्रभावित होकर नौकरी छोड़ दी और उनके शिष्य बन गए।

तीसरे श्यामा शरण बाबा रिश्ते में महाराज के भतीजे लगते हैं। उनका जन्म भी महाराज के ही गांव में हुआ था। वह बचपन से ही उनसे प्रेरित थे। उन्होंने दीक्षा ली और अब हमेशा उनके साथ ही रहते हैं।

चौथे शिष्य आनंद प्रसाद बाबा पहले फुटवेयर्स का बिजनेस करते थे, लेकिन महाराज से मुलाकात के बाद उन्होंने सांसारिक दुनिया को अलविदा कह दिया। पांचवें ​शिष्य अलबेलिशरण बाबा पहले सीए थे, लेकिन महाराज की बातें सुनकर उन्होंने सांसारिक जीवन त्याग दिया और अब वह उनके साथ परछाई की तरह रहते हैं। यह पांचों एकजुट होकर अपने गुरु की सेवा करते हैं।



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