मैं सीढ़ी की धरातल का वो पत्थर  हूँ

जिस पर पैर रखकर 

ना जाने कितने लोग सीढ़ियां चढ़ गये 

लेकिन मैं आज भी 

उसी जगह ठहर कर 

लोगो को सीढ़ियां चढ़ाते जा रहा हूँ

जीवन में ना जाने मुझसे होकर 

कितने लोग गुज़रे 

कोई गिरे, कोई फिसले 

कोई ऊंचाई पर पहुंच गए 

लेकिन मैं आज भी वहीं हूँ

हरेक बार मैंने उठने की कोशिश की 

लेकिन सीढ़ियां मेरी टस से मस कहाँ हुई 

जिंदगी के हरेक मौसम को देखा है मैंने

सब कुछ देखा 

और बहुत कुछ सहा है मैंने 

दुनिया की इस मतलबी भीड़ ने 

अपना मतलब सीधा करके 

सिर्फ ठगा है मुझे!

अर्चना त्यागी

कवियत्री



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