झांसी । बड़ागांव गेट बाहर तलैया मोहल्ला में सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा महापुराण का समापन रविवार को हुआ । अंतिम दिन श्रीमद् भागवत कथा का रसपान करने के लिए कथा स्थल पर जन सैलाब उमड़ पड़ा। कथा व्यास श्री सतेन्द्र कृष्ण शास्त्री वृंदावन ने कथा का समापन करते हुए कई कथाओ को श्रवण करवाया, जिसमें प्रभु श्री कृष्ण के 16108 शादियो का प्रसंग के साथ सुदामा प्रसंग और परीक्षित मोक्ष की कथाएं सुनाई।
सुदामा चरित्र सुनकर श्रोता भक्ति भाव में डूब गए । वृंदावन से पधारे श्री सतेंद्र कृष्ण शास्त्री ने सुदामा चरित्र का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि सुदामा जी भगवान कृष्ण के परम मित्र थे। भिक्षा मांग कर अपने परिवार का पालन पोषण करते । गरीबी के बावजूद भी हमेशा भगवान के ध्यान में मग्न रहते ।
पत्नी सुशीला जी बार बार आग्रह करती की आपके मित्र तो द्वारकाधीश हैं उनसे जाकर मिलकर आएं जिससे शायद हमारी गरीबी मिट जाए। सुशीला के बार बार कहने पर सुदामा जी द्वारका पहुंचते हैं और द्वारपाल से भगवान से मिलने की इच्छा जताते हैं । सुदामा के मिलने की जिद पर द्वारपाल ने जाकर भगवान श्री कृष्ण को बताया कि कोई ब्राह्मण फटे कपड़े पहने हुए आपसे मिलना चाहता है और अपना नाम सुदामा बता रहा है। यह नाम सुनते ही कृष्ण भगवान नंगे पैर ही दौड़कर आते हैं और मित्र को अपने गले से लगा लेते हैं। उनकी दीन दशा देखकर कृष्ण के आंखों से आंसुओं की धारा प्रवाहित होने लगती है। सिंहासन पर बैठाकर कृष्ण जी सुदामा के चरण धोते हैं सभी पटरानियां सुदामा जी से आशीर्वाद लेती हैं।
सुदामा द्वारका से विदा लेकर अपने घर लौटते हैं तब भगवान कृष्ण की कृपा से अपना फूस का घर महल बना पाते हैं तो भगवान को कोटि कोटि नमन करते हैं। लेकिन सुदामा जी अपनी फूस की बनी कुटिया में रहकर भगवान का स्मरण करते हैं।
अगले प्रसंग में सुखदेव जी ने राजा परीक्षित को सात दिन तक यह कथा महापुराण सुनाई । जिससे परीक्षित का मृत्यु का भय निकल जाता है । अंत में तक्षक नाग आता है और राजा परीक्षित को डस लेता है। राजा परीक्षित कथा श्रवण करने के कारण भगवान के परमधाम को पहुंचते हैं ।
इसके साथ ही सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा महापुराण का समापन हो जाता है। यह आयोजन कुशवाहा समाज के प्रभु बाबू द्वारा किया गया।
(झांसी से हरिओम कुशवाहा की रिपोर्ट)
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