एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली से भारत के नाम का डंका पूरे विश्व में बज रहा है। वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेता ज़िम्मेदार पद पर बैठकर भी उल्टासीधा बोल जाते हैं।

मंगलवार 9 जनवरी को नगरनिगम की बैठक में पार्षद सचिन डागर ने किसी का नाम लिए बिना 30 लाख रुपये रिश्वत लिए जाने का मुद्दा उठाया था। जिस पर भड़कते हुए मेयर सुनीता दयाल ने उनकी गर्दन अलग कर देने की बात कही थी।

सदन के अंदर इस तरह की भाषा का प्रयोग करना सर्वथा अनुचित है। जब सचिन डागर ने किसी का नाम तक नहीं लिया तब सिर्फ भ्रष्टाचार की बात उठाने पर मेयर सुनीता दयाल का ऐसी भाषा बोलना समझ से परे है।

सुनीता दयाल ग़ाज़ियाबाद की प्रथम नागरिक हैं। जब उन्होंने ऐसी भाषा बोली तब वो सदन के अंदर थीं और सदन की बैठक चल रही थी। अगर कोई पार्षद भ्रष्टाचार होने की बात बताना चाह रहा था तो इसमें कुछ ग़लत नहीं है। मेयर होने के नाते सुनीता दयाल को पार्षद की पूरी बात सुनकर जाँच करवाने की प्रक्रिया अपनानी चाहिए थी। जाँच होगी तो दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा। पर इसकी जगह सर तन से जुदा वाली भाषा का प्रयोग उचित नहीं है। जनसंघ से भारतीय जनता पार्टी बने संगठन के विचारकों को इसका चिंतन करना चाहिए।

बृजेश श्रीवास्तव

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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