भारत एक विशाल जनसंख्या वाला लोकतांत्रिक देश है । यह देश प्राचीन काल से ही लोगों का निवास स्थान रहा है। दूसरे देशों से लोगों के इस देश में आकर बसने का मुख्य कारण व्यापार था । यह देश सदैव उपजाऊ रहा है । मुगलों का इस देश पर कब्ज़ा करने का उद्देश्य एक ही था, एक तो यहाँ का मौसम और दूसरा यहाँ व्यापार के अवसर । मुगलों ने इस देश पर लगभग आठ सौ वर्षों तक शासन किया। किसी ने यहां के खनिजों को लूटा तो किसी ने इस देश को सोने की चिड़िया बना दिया । अंग्रेजों ने इस सोने की चिड़िया को देखा और इसे चुराने की योजना बनाई, पहले उन्होंने व्यापार शुरू किया और धीरे-धीरे इस देश पर कब्जा कर लिया । 

व्यापार इस देश की अर्थव्यवस्था का मुख्य स्रोत रहा है। आज भी विकसित देशों की कंपनियां यहां आकर कारोबार करना चाहती हैं। भारत सरकार ने दूसरे देशों के व्यापारियों को बड़ी रियायतें दी हैं, क्योंकि सरकार जानती है कि जब तक व्यापार को बढ़ावा नहीं दिया जाएगा, देश का विकास नहीं हो सकता। इसे ध्यान में रखते हुए सरकार औद्योगीकरण को बढ़ावा देने के लिए त्रिस्तरीय रणनीति तैयार कर रही है। यह मॉडल है जिस पर काम किया जा रहा है । कारोबार करने में आसानी के मामले में भारत ने तेजी से कदम बढ़ाए हैं और विश्व बैंक की रैंकिंग के मुताबिक भारत 130वें स्थान पर आ गया है। आज भारत में व्यापार करना पहले से कहीं अधिक आसान हो गया है । अनावश्यक शर्तों के अनुपालन को हटा दिया गया है और कई मामलों में अनुमोदन ऑनलाइन प्राप्त किया जा सकता है। एनडीए सरकार औद्योगीकरण को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित कर रही है 'मेक इन इंडिया' पहल भारत में न केवल विनिर्माण बल्कि अन्य क्षेत्रों में औद्योगीकरण को बढ़ावा देने के लिए स्तंभों पर आधारित है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद मानते हैं कि जब तक भारत व्यापार के क्षेत्र में दो कदम आगे नहीं बढ़ता, तब तक देश विश्व मानचित्र पर अपनी पहचान नहीं बना सकता। ये प्रधानमंत्री के शब्द हैं, "मेरा दृढ़ विश्वास है कि भारत में प्रचुर औद्योगिक क्षमता है जिसका दोहन करने की आवश्यकता है, ताकि यह एक ऐसा देश बन सके जो रोजगार से अधिक रोजगार प्रदान करने में सक्षम हो ।" 

भारत में, स्वदेशी लोग पहले से ही अपने दम पर लघु उद्योग विकसित कर रहे हैं। भारत में ऐसे कई शहर हैं जो अपने उद्योग के लिए जाने जाते हैं। जहां बिना किसी धर्म के भेदभाव के सभी लोग मिलकर भारतीय अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं । उत्तर प्रदेश के कई शहर अपने व्यापार के लिए जाने जाते हैं । अलीगढ के ताले, मोरादाबाद का पीतल का कारोबार, भदोही के कालीन, बनारस की साड़ी, फिरोजाबाद की चूड़ियाँ, कानपुर के जूते, लखनऊ की चिकनकारी और सहारनपुर के लकड़ी के फर्नीचर का कारोबार, इन सभी का व्यापार हिंदू और मुसलमानों द्वारा एक साथ किया गया है। अगर कोई हिंदू फैक्ट्री है तो उसमें काम करने वाले ज्यादातर मजदूर मुस्लिम हैं, इसी तरह अगर किसी मुस्लिम की फैक्ट्री है तो उसमें काम करने वाले भी हिंदू ही हैं। इस तरह दोनों की चूलियाँ जलती रहती हैं और भारत की अर्थव्यवस्था बढ़ती रहती है। 

अपने शुरुआती दिनों में सरकार चलाने के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का नारा था, "सब का साथ, सबका विकास" और इसी नारे के आधार पर, सरकार की नीति धर्म और जाति के भेदभाव के बिना सभी के कल्याण के लिए बनाई गई। फिर उन्होंने अपनी नीति में और इजाफा करते हुए सबके विश्वास की बात कही। इसका अर्थ है "सबका साथ, सबका विकास और सबकी चिंता"। इसी आधार पर सरकार ने सबके समान विकास के लिए काम किया और फिर विकास के साथ विश्वास को भी लाने का प्रयास किया। भारत सरकार ने विश्वास हासिल करने की बहुत कोशिश की । जिसमें वह सफल होती नजर आई। आश्वस्त होने के बाद सरकार एक कदम आगे बढ़ी और प्रयास के बारे में बात करने लगी। कोई भी सरकार जानती है कि जब तक देश की जनता संतुष्ट नहीं होगी तब तक देश का विकास नहीं होगा। इसके तहत सरकार ने स्किल पर ध्यान देना शुरू किया। देश के युवाओं को हुनरमंद बनाने का प्रयास किया ताकि वे हुनर सीख कर देश के विकास के लिए मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में आगे बढ़ सकें और देश को आगे ले जा सकें।

भारत के लगभग सभी राज्यों में जहां हिंदू और मुस्लिम बहुसंख्यक हैं, दोनों मिलकर व्यापार करते हैं। दोनों की नज़र में सबसे पहली बात यह है कि वे अपने बच्चों का पालन-पोषण ठीक से कर सकें और उसके बाद देश को आर्थिक रूप से मजबूत करना है । क्योंकि वे जानते हैं कि देश समृद्ध होगा तो शहर और गांव भी बेहतर होंगे। और लोगों के जीवन स्तर में भी सुधार आएगा। जिसमें बच्चों का भविष्य बेहतर होगा और खुशहाल देश का निर्माण होगा । 

मौजूदा सरकार खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय व्यापार को बढ़ावा देने पर विशेष ध्यान दे रहे हैं । एनडीए सरकार व्यापार के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ी है। अन्य विकसित देशों के साथ व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किये गये हैं । निश्चित ही इससे हमारे देश की जनता को बहुत लाभ होगा। रोजगार के अवसर बढ़े हैं। बेरोजगारी धीरे-धीरे कम हो रही है। दूसरे देशों की तरफ लाइन भी कम हो रही है। इसमें और अधिक प्रयास करने की जरूरत है, सरकार को भारत के अन्य शहरों पर भी ध्यान देने की जरूरत है जहां रोजगार की कोई उचित व्यवस्था नहीं है या कोई बड़ी फैक्ट्री नहीं है । ऐसी नीति बनाई जानी चाहिए कि छोटे शहरों में वहां के वातावरण के अनुसार कारखाने लगाए जाएं और रोजगार के अवसर पैदा किए जाएं। भारत सरकार ने पिछले सात-आठ वर्षों में लोगों के सामर्थ्य को विकसित करने का काम किया है। कोशिश की गई है कि लोगों के पास जो क्षमता है, उसके अनुरूप ही काम करें। 

भारत सरकार ने भी तदनुसार अपनी शिक्षा नीति में बदलाव किया है और हर बच्चे में कौशल विकसित करने के लिए ऐसी शिक्षा देने की योजना तैयार की है, जिससे हर बच्चे में विनिर्माण क्षमता पैदा होगी। और नौकरी ढूंढने के बजाय एक ऐसा व्यवसाय शुरू करें जो पंद्रह लोगों को रोजगार दे । भारत ने भी इस दिशा में एक कदम आगे बढ़ाया है। हमने देखा है कि पिछले कोरोना कॉल के बाद से लोगों की व्यापार में रुचि बढ़ी है और वे चीजें बना रहे हैं, जिन पर हम दूसरे देशों के उत्पादों पर निर्भर रहते थे। अब वे हमारे शहर में खुद को तैयार कर रहे हैं। जिसमें कुछ लोगों को नौकरी भी मिली है। देखा गया है कि सभी धर्मों के लोग एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं। कौन हिंदू है और कौन मुसलमान, ये सब व्यापार में देखने को नहीं मिल रहा है। सभी लोग मिलकर काम कर रहे हैं। यही हमारे भारत की खूबी है और दुनिया में हमारी पहचान भी इसी पर आधारित है । 


(आलेख : रमन चौधरी)

Share To:

Post A Comment: