एक पेंटिंग बहुत प्रसिद्ध है... जिसमें कि दो चार दाढ़ी वाले अरबी लिबाज पहने हए लोग एक निर्वस्त्र खड़ी गोरे रंग की नग्न महिला को बहुत करीब से घूर घूर के देख रहे हैं जैसे कि वो कोई वस्तु हो। ये दाढ़ी वाले अरब के लोग उस स्त्री के गोपनीय अंगों को देखकर चेक कर रहे हैं कि ये कितना आनंद प्रदान कर सकते हैं। दरअसल मुगलों के जमाने में और इस्लामिक हुकूमतों के दौरान बहुत बड़े पैमाने पर महिलाओं की लूट होती थी। इन महिलाओं को बेचा जाता था खरीदा जाता था। ये एक तरह से यौन दासियां थीं, सेक्स स्लेव। ऐसी पेंटिंग्स इतिहास के इसी घिनौने सच को प्रकट करती हैं। उस वक्त फिल्म बनाने की सुविधा नहीं थी। लेकिन ये पेंटिंग्स मुगलों के जमाने की द केरला स्टोरी है।

द केरला स्टोरी में इस्लामी हुकूमतों की जिन यौन दासियों के  बारे में बताया गया है। ये शायद दुनिया के इतिहास में उन सभी महिलाओं को एक आवाज देना है जो गुलाम वंश, खिलजी वंश, लोदी वंश, मुगल वंश के सुल्तानों और बादशाहों की बेलगाम हवस का शिकार हुई थीं। फिल्म के आखिर में एक ISIS ब्राइड का ये बयान दिखाया जाता है कि फिल्म में जो दिखाया गया है हमने उससे भी कई गुना ज्यादा तकलीफ और दर्द सहा है जिसको किसी फिल्म या कहानी में बयां नहीं किया जा सकता है।

अल्लाह के लिए जिहाद के रास्तों पर जाने वाले लोगों की संख्या बढ़ाने के लिए एक स्ट्रेटेजी के तौर पर इस्लामिक स्टेट ने पूरी दुनिया से स्त्रियों की तस्करी सीरिया में करवाई थी। जिहाद के मकसद से जा रहे पुरुषों को आनंद प्रदान करना भी जिहादियों का फर्ज है। इसी मकसद के साथ पूरी दुनिया से कुछ मुस्लिम संगठनों और आतंकी संगठनों ने मिलकर साम दाम दंड भेद से किसी भी तरह औरतों को सीरिया भिजवाने का जाल फेंका था। ये अत्यंत कटु मजहबी सत्य है जिसको द केरला स्टोरी फिल्म में नंगा कर दिया गया है। पूरा जिहादी समाज इस फिल्म की वजह से एकदम नंगा हो चुका है। 

द केरला स्टोरी एक ऐसा आईना है जिसने जिहादी समाज को उसका कुरूप चेहरा दिखा दिया है। लेकिन ये कुरुप चेहरा देखकर जिहादी समाज काफी दुखी और आहत हो रहा है। किसी गंदे व्यक्ति को अगर ये कहा जाए कि तुम गंदे हो तो उसको अपनी गंदगी को साफ करना चाहिए। लेकिन हो ये रहा है कि ये गंदा आदमी अपनी गंदगी को सही साबित करने में लगा है।

लेकिन ये जिहादी समाज अब तक ये बताने में असफल रहा है कि आखिर द केरला स्टोरी फिल्म में कौन सा फैक्ट गलत दिखाया गया है । जिस 32 हजार के आंकड़े पर विवाद उठाया जा रहा है वो बेबुनियाद है। क्योंकि जब देश के अंदर फिक्शन पर फिल्म बन सकती है तो उन चार लड़कियों पर फिल्म क्यों नहीं बन सकती है। जो केरल की ही रहने वाली हैं और उन पर फिल्म बनाकर हिंदुओं को सावधान करने में आखिर क्या बुराई है।

लेकिन ममता बनर्जी ने इस फिल्म को प्रतिबंधित कर दिया है शायद इसलिए क्योंकि वोट बैंक के कारनामों को छुपाने का प्रयास किया जा रहा है। ध्रुव राठी नाम के एक यूट्यूबर ने भी इस फिल्म का विरोध करके खुद को एक्सपोज कर दिया है। एक सच्ची फिल्म पर सवाल उठाने वालों के चेहरे से कथित सेक्युलरिज्म का नकाब उतर गया है। जिसकी वजह से जिहादी समाज काफी ज्यादा परेशान है।

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