एक ग़ज़ल ......
मज़ाक ऐसे इनका उड़ाया करें हम,
ग़मों में सदा मुस्कुराया करें हम।
जो मायूस हैं मुफलिसी से जहाँ में,
उन्हें भी ज़रा गुदगुदाया करें हम।
हर इक लम्हा यारों बहुत क़ीमती है,
नहीं वक़्त बातों में ज़ाया करें हम।
ग़लत कामों से क्या ये दौलत कमाना,
बस इज़्ज़त की रोटी कमाया करें हम।
इक आईने के आगे तुमको खड़ा कर ,
तुम्हीं से तुम्हीं को मिलाया करें हम।
सुना है कि नज़रों से करते हो घायल,
हुनर आपका आजमाया करें हम।
हमारी वजह से न रुसवा कोई हो,
सभी राज़ दिल में छुपाया करें हम।
बहुत ख़ूबसूरत है महफ़िल तुम्हारी,
कहो तो यहाँ रोज़ आया करें हम।
© पुनीत कुमार माथुर, इंदिरापुरम, ग़ाज़ियाबाद


Post A Comment: