🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏 


मित्रों आज का ये श्लोक भी श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय सत्रह 'श्रद्धात्रयविभागयोग' से ही ....


दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे ।

देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम् ॥

(अध्याय 17, श्लोक 20)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से बोले) -दान देना ही कर्तव्य है- ऐसे भाव से जो दान देश तथा काल (जिस देश-काल में जिस वस्तु का अभाव हो, वही देश-काल, उस वस्तु द्वारा प्राणियों की सेवा करने के लिए योग्य समझा जाता है।) और पात्र के (भूखे, अनाथ, दुःखी, रोगी और असमर्थ तथा भिक्षुक आदि तो अन्न, वस्त्र और ओषधि एवं जिस वस्तु का जिसके पास अभाव हो, उस वस्तु द्वारा सेवा करने के लिए योग्य पात्र समझे जाते हैं और श्रेष्ठ आचरणों वाले विद्वान्‌ ब्राह्मणजन धनादि सब प्रकार के पदार्थों द्वारा सेवा करने के लिए योग्य पात्र समझे जाते हैं।) प्राप्त होने पर उपकार न करने वाले के प्रति दिया जाता है, वह दान सात्त्विक कहा गया है।


आपका दिन शुभ हो ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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