🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏 


मित्रों आज भी श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय सत्रह 'श्रद्धात्रयविभागयोग' से ही ये दो श्लोक .....


कट्‌वम्ललवणात्युष्ण तीक्ष्णरूक्षविदाहिनः ।

आहारा राजसस्येष्टा दुःखशोकामयप्रदाः ॥

(अध्याय 17, श्लोक 9)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से बोले) -कड़वे, खट्टे, लवणयुक्त, बहुत गरम, तीखे, रूखे, दाहकारक और दुःख, चिन्ता तथा रोगों को उत्पन्न करने वाले आहार अर्थात्‌ भोजन करने के पदार्थ राजस पुरुष को प्रिय होते हैं।


यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत् ।

उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम् ॥

(अध्याय 17, श्लोक 10)


इस श्लोक का भावार्थ :(श्री भगवान्‌ बोले)- जो भोजन अधपका, रसरहित, दुर्गन्धयुक्त, बासी और उच्छिष्ट है तथा जो अपवित्र भी है, वह भोजन तामस पुरुष को प्रिय होता है।


शुभ दिन ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

Share To:

Post A Comment: