बहुत खोज करने के बाद भी मुझे ये स्पष्ट नहीं हो पा रहा था कि क्या कृष्ण की बांसुरी की दीवानी राधा भी बांसुरी बजाना जानती थीं।
सभी जगह यही पढ़ने को मिला कि राधा को सिर्फ कृष्ण की बांसुरी सुनना पसंद था लेकिन वो स्वयं बांसुरी नहीं बजाती थीं।
इस खोज में एक बहुत सुंदर लोक कथा पढ़ी जो आपके साथ साझा कर रहा हूं....
कृष्ण की बांसुरी केवल एक साधारण वाद्य यंत्र नहीं थी, बल्कि एक जादुई वाद्य यंत्र थी जिसमें अपनी मधुर धुन सुनने वालों को मंत्रमुग्ध करने की शक्ति थी। कहा जाता है कि जब भी कृष्ण अपनी बांसुरी बजाते थे, नदियाँ बहना बंद कर देती थीं, पक्षी गाना बंद कर देते थे और पेड़ सुनने के लिए झुक जाते थे।
लेकिन एक व्यक्ति ऐसा था जिसका कृष्ण की बांसुरी की धुन के प्रति प्रेम अन्य सभी से बढ़कर था - राधा। वह अक्सर कृष्ण की बांसुरी की धुन को सुनने के लिए अपने अपने सारे कामों को छोड़ कर भागी चली आती थीं, और उनकी बांसुरी की ध्वनि राधा के हृदय को आनंद से भर देती थी।
एक दिन, कृष्ण ने राधा की भक्ति की परीक्षा लेने का फैसला किया। उन्होंने अपनी बांसुरी छिपा दी और उसे हर जगह खोजने का नाटक किया। बांसुरी की मधुर धुन फिर से सुनने के लिए बेताब राधा ने कृष्ण को उसे खोजने में मदद करने की पेशकश की। उन्होंने पत्तों को हटाया और बांसुरी ढूंढ़ निकाली। बांसुरी जादुई रूप से राधा के हाथों में आ गई और वो उसे एक बहुत माधुर्य के साथ बजाने लगीं। अपने इस कौशल का राधा को कभी पता भी नहीं था।
कृष्ण मुस्कुराते हुए राधा से बोले, 'राधा, मेरी बांसुरी की धुन के प्रति तुम्हारे प्रेम ने तुम्हारे भीतर के संगीतकार को जगा दिया है। अब से, तुम ही बांसुरी बजाओगी और मैं उसकी धुन पर नाचूंगा।' और इस तरह, राधा बांसुरी वादक बन गईं और कृष्ण नर्तक। उनका प्रेम और संगीत अविभाज्य हो गए, और वृंदावन के वन उनकी भक्ति की मधुर ध्वनियों से गूंज उठे।
आलेख : पुनीत माथुर ’परवाज़’


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