नई दिल्ली : बृजेश श्रीवास्तव। गुरूजी ने विश्वभर में फैले हिंदुओं के हित संरक्षण के लिए स्वामी चिन्मयानंद के सान्निध्य में 1964 में विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना की थी। 'न हिन्दू पतितो भवेत्' के संकल्प के साथ देश में हिंदुओं को स्वधर्म में लाने, वेद,गंगा,गौ और संस्कृत के संरक्षण संवर्धन के साथ सेवा कार्यों पर विशेष ध्यान दिया गया। सनातन धर्म की रक्षा करने के साथ अपनी गौरवमय यात्रा के छह दशक उपरांत विहिप सात समंदर पार बसे भारतवंशियों में हिंदुत्व और सांस्कृतिक चेतना जागरण का कार्य कर रही है।
ये विचार विहिप संस्कृत आयाम द्वारा नई दिल्ली के वसंत विहार स्थित ललित महाजन सरस्वती विद्या मंदिर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में आयोजित अखिल भारतीय संस्कृत शिक्षक प्रशिक्षण वर्ग के दूसरे दिन अपने बौद्धिक उद्बोधन में विश्व हिन्दू परिषद के संगठन महामंत्री मिलिंद देशपांडे ने व्यक्त किये।
इससे पूर्व विगत दिवस इस वर्ग का उद्घाटन विहिप के अंतराष्ट्रीय अध्यक्ष एडवोकेट आलोक कुमार ने कहा कि सब जगह भारतीय भाषाओं का विकल्प होने के बावजूद अंग्रेजी के प्रति अतिरिक्त प्रेम और अपनी भाषाओं के प्रति हीनता का भाव चिंता का विषय है। देववाणी संस्कृत सहित भारतीय भाषाएं प्रभावी, उपयोगी और व्यावहारिक हैं। हिंदुत्व के गौरव काल की तरह यह समय भारतीय भाषाओं की पहचान और सम्मान का भी समय है। संस्कृत शिक्षण ईश्वरीय संदेश के साथ पुण्य का और राष्ट्र भक्ति का कार्य है। विहिप का संस्कृत आयाम वर्षों से संस्कृत शिक्षक तैयार कर रहा है, यह हमारे लिए गौरव की बात है।
विहिप के राष्ट्रीय संस्कृत आयाम प्रमुख प्रो. देवी प्रसाद त्रिपाठी ने कहा कि संस्कृत का अक्षय और समृद्ध वांग्मय भारत की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। संस्कृत आयाम देशभर में देववाणी संस्कृत को जन-जन तक पहुंचाने के लिए कृत संकल्प है।
इस अखिल भारतीय संस्कृत शिक्षक प्रशिक्षण वर्ग में पश्चिम बंगाल, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश, बिहार, दिल्ली और उत्तराखंड राज्यों सहित नेपाल से सौ से भी अधिक शिविरार्थी भाग ले रहे हैं।
इस संस्कृत वर्ग में वर्गाधिकारी के रूप में प्रो. गणेशदत्त भारद्वाज, वर्ग प्रमुख डॉ दिनेश शास्त्री, वेद विभाग के प्रभारी हरिशंकर, प्रशिक्षक रूप में डॉ सूर्यमोहन भट्ट, डॉ सूर्यमणि भंडारी, डॉ चितरंजन कौशल, डॉ दुर्गेश मिश्र, डॉ देशबंधु, डॉ हरिप्रिया, डॉ योगेंद्र शर्मा, डॉ नवीन पांडेय, डॉ दीपक वशिष्ठ, डॉ पंकज सेमल्टी, डॉ अश्विनी शर्मा, डॉ ग्रीन अवस्थी और विजय राव आदि प्रमुख हैं।
अखिल भारतीय संस्कृत शिक्षक प्रशिक्षण वर्ग के संयोजक और भारत संस्कृत परिषद के महासचिव सूर्य प्रकाश सेमवाल ने कहा कि संस्कृत आयाम केवल संस्कृत संभाषण ही नहीं बल्कि भारत की सनातन विधाओं को संरक्षित एवं संवर्धित करने को संकल्पित है। विगत एक दशक से वैश्विक स्तर पर भारत के सांस्कृतिक मानबिन्दुओं को जो मान्यता मिल रही है,वह उत्साहजनक है। आयाम और परिषद देश के विभिन्न राज्यों में संस्कृत भाषा, संस्कृत शिक्षकों और गुरुकुलों को सम्मान और प्रतिष्ठा देने के लिए अभियान चलाने के साथ आवश्यकता पड़ने पर आंदोलन के लिए भी तैयार रहेंगे।
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