किसी ने यूँही पूँछ लिया कहाँ के हो,

मन में मधुर सी यादों ने मुस्कुरा के मुझसे कहा, 

नई जगह पे नए मकान को सजाकर घर बनाती, 

नई जगह, नये शहर को आशियाना बनाती,

कभी पर्वत तो कभी रेगिस्तान तो कभी समुद्र किनारे,

हर मौसम और जगह में प्यार से ढल जाती,

यूं ही यादों के समुंदर की लहरों ने दिल पे दस्तक दी जब,

किसी ने यूँही पूँछ लिया कहाँ के हो।

नई जगह में नए लोगों को अपना परिवार बनाती,

कुछ ही समय में उनको सुंदर यादों में समेटे,

फिर आगे नई जगह नदिया सी बह जाती, 

हर त्योहर की रौनक दिखती है मुझमें चहक सी, 

रसोई को मेरी है आदत देश के प्रांतों की महक की,

उत्तरायन की ऊर्जा से बनी

बैसाखी सी रंगत,

मकर संक्रांति की पतंगों सी चंचलता भरी,

ख्याल आया जब

किसी ने यूँही पूँछ लिया कहाँ के हो।

कश्मीर के केसर सी रौनक लिए 

केसरिया बालम की धुन गुनगुनाती, 

ओणम के उत्साह से

झूम उठी दिल की कली कथकली सी, 

अहसास हुआ की आसमान सा खुला और सागर सा विशाल मन,

लहरों सी ताकत समाए चलती हूँ,

हाँ मैं फौजी परिवार की नारी हूँ,

पूरा देश है मेरा,

मैं भारत की हूँ,

मेरे देश का हर कोना समाया है मुझमें,

सौभाग्यशाली हूँ कि मैं भारत की हूँ।

कवियत्री

श्वेता सिंह चौधरी




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