सरोज बचपन से ही एयर फोर्स विद्यालय की पढ़ी एक होनहार, मेधावी एवं मिलनसार बच्ची थी । हर दिन वायु सेना के जवानों से रू-बरू होना उसका स्वाभाव ही था । उनकी जीवन शैली को देख एक तरफ देश के लिए मर मिटने की भावना तो दूसरी तरफ लोगों के लिए अपने आप को समर्पित करना, ये बात बचपन से उसमें कूट-कूट कर भरती चली गई। इसी बीच उसकी मुलाकात सेना के एक अधिकारी सार्जेंट सुरेश खन्ना से हुई जिनकी जीवन शैली को देख उनका मित्र होना भी वह  बहुत गौरांवित महसूस करती।

चूंकि सरोज एक विद्यार्थी थी और सुरेश एक अधिकारी, वह उन्हें जितना ही सम्मान की दृष्टि से देखती उतना ही दोनों में एक मधुरता का रिश्ता पनपने लगा। धीरे-धीरे यह खबर घर तक पहुंच गई । सरोज की उम्र देख पिता ने उसे अप्रत्यक्ष रूप से समझाने की कोशिश की कि एक जवान के लिए देश सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं होता। उनकी जीवन शैली सही नहीं होती, वह देश के जिस क्षेत्र में रहते हैं, ख़ुद को भी उसी में ढाल लेते हैं। मधुमेह इत्यादि तो  उनका जीवनसाथी जैसा संग निभाता है। उनके जीवन में कोई बंदिशें नहीं होती हैं, जब चाहें, जहां चाहें, जिसके साथ...

सरोज मौन हो सब कुछ सुनती रही। पिता के इस रवैया पर उसने कुछ कहना भी ठीक न समझा। वक्त की सुई बढ़ती ही जा रही थी । महीने फिर साल बीतते गए।

बारहवीं के बाद स्नातक में सरोज का दाखिला हो गया। उसने हमेशा से ही पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद में भी समान रूप से भागीदारी की। इसी दौरान पिता ने सरोज के लिए कितनी ही रिश्ते देखे लेकिन नियति को शायद कुछ और ही मंजूर था ।  सरोज के लिए आने वाले सारे ही रिश्ते किसी न किसी रूप में सेना विभागों से ही ताल्लुक रखते थे। मगर पिताजी सेना की बात सुनते ही विवाह करने से साफ इनकार कर देते।

इसी दौरान कमांडो अधिकारी की रिक्तियां निकलीं । सरोज ने घर पर बिना बताए ही परीक्षा में हिस्सा लिया और सौभाग्यवश उसका चयन भी हो गया। 

माता-पिता न चाहते हुए भी सरोज के चयन और उसकी इच्छा देख रोक ना सके और वह तीन महीने के लिए ट्रेनिंग पर चली गई।

अब घर बिल्कुल सूना हो चुका था। पिता का स्वास्थ्य भी ढलता जा रहा था। सरोज की बढ़ती उम्र, कमांडो में चयन, पिता के लिए बेटी का घर बसाना एक बहुत बड़ी चुनौती बन गया । अब जो भी रिश्ता आता कमांडो सुन  खुशी तो जताता पर विवाह से   साफ इनकार कर देता।

अब तक सरोज अपनी ट्रेनिंग समाप्त कर घर आ चुकी थी। पिता की मनःस्थिति देख एक दिन सरोज ने पिता से कहा, "पापा आप मेरे विवाह की इतनी चिंता क्यों कर रहे हैं?”

”बेटा तुम देख रही हो ना अभी जो कुछ हो रहा है”

”हां पापा, यह तो होना ही था, आप भी तो कुछ महीने पहले तक ऐसा ही सोचते थे, सिर्फ आप क्या भारत की करीब 70% जनसंख्या एक सेना अधिकारी के लिए कुछ ऐसा ही सोच रखती है कि उनके जीवन में कोई अंकुश नहीं होता, लेकिन पापा मैं बचपन से ही सेना अधिकारियों के बहुत  करीब रही हूं । वो अपना जीवन  हर हाल में धरती मां को समर्पित करते हैं । वही देश की हर बेटी, बहू, यहां तक कि पत्नी को सर आंखों पर बिठाकर रखते हैं । अब आप अपनी बेटी को ही एक ज्वलंत उदाहरण के रूप में देख लीजिए !”

”बेटा तुम मेरी बेटी नहीं बेटा हो ! मेरी शान हो!  देश का गौरव हो!”

”हां पापा, फिर भी एक कमांडो सरोज खन्ना हूं।”

(पिता शाबाशी देते हुए) ”तो फिर सारे सेना अधिकारी कैसे बुरे हो सकते हैं ? वो भी तो किसी के बेटे हैं, उनके अंदर में भी तो एक मां का खून है।”

”हां बेटा, तुम सही कह रही हो, हर कोई बुरा नहीं हो सकता !” 

”जी पापा, यह हुई ना एक कमांडो के पिता जैसी बात!”

”पापा अब आपकी बेटी बड़ी हो चुकी है। आप मेरी टेंशन लेना छोड़ दीजिए । मेरे साथ विवाह करने के लिए आज भी सुरेश खन्ना कुंवारे हैं। उन्हे प्रतीक्षा है कि कब आपकी परमिशन मिले और कब हमारी शादी हो।”

”बेटा ये तुम क्या कह रही हो?”

”हां पापा...सुरेश आज भी ...”

”बेटा तुमने उसके बाद कभी उसके बारे में जिक्र नहीं किया !”

”पापा, क्या ज़िक्र करती मैं ? आपने तो एक सेना अधिकारी प्रति लिए जो धारणा बनाई हुई थी उसके आगे मैं क्या कहती। लेकिन आज आपकी चिंता दूर करने के लिए और वर्षों तक किसी की तपस्या को खत्म करवाने के लिए मुझे यह कहना पड़ा।” 

”बेटा कल ही घर लौटते वक्त सुरेश को अपने साथ घर ले लाना।”

”रियली पापा !”

”हां बेटा”  

सरोज दफ्तर से आते हुए सुरेश को साथ ले आई।

पिता ने भी खातिरदारी में कोई कसर न छोड़ी।  तीनों बहुत देर तक बातें करते रहे। सरोज के पिता पूछ बैठे, ”तुमने इतने सालों तक शादी क्यों नहीं की ?”

सुरेश मुस्करा कर मौन रह गया।पिता ने उसे अपने माता-पिता को साथ लाने को बोला ताकि दोनों के रिश्ते को वो एक मंजिल तक पहुंचा सकें।

सुरेश और सरोज ने पिता के चरणस्पर्श किए, उनकी खुशी का ठिकाना न था। 

एक सप्ताह बाद सुरेश के माता-पिता की मौजूदगी में पंडित जी ने विवाह की तिथि निश्चित कर दी। दोनों परिवारों के समक्ष बहुत ही जोर-शोर से विवाह संपन्न हो गया। इस अवसर पर सुरेश के पिता कहने लगे, ”मुझे गर्व है कि आज में देश के दो नौजवानों का पिता हूं।”

सरोज के पिता भी अपने आप पर बहुत गर्व महसूस कर रहे थे कि वो दो जवानों के पिता हैं। 

पूरा परिवार खुशी से झूम रहा था। विवाह संपन्न हो गया।  सरोज की नम आंखों को देख पिता कहने लगे, ”तुम एक बेटी होने के साथ-साथ देश की सेना अधिकारी हो, रोना तुम्हें शोभा नहीं देता।” 

पिता ने बेटी की विदाई का दुख छुपाते हुई खुशी-खुशी सरोज को सुरेश के साथ विदा कर दिया।

लेखिका डॉली शाह जी, 
जिला : हैलाकंदी, असम








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