भारत में अलग-अलग जाति के लोग रहते हैं, अलग-अलग धर्म और मान्यताएं यहां की रंगीन जिंदगी का हिस्सा हैं। थोड़ी दुरी से भिन्न भाषाओं के आधार भाषाई क्षेत्र हैं, लेकिन इस विविधता के बावजूद, भारत में हमेशा एक बुनियादी एकता रही है । भारत के पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू लिखते हैं कि "मुझे लगता है कि इतिहास के किसी भी हिस्से में, एक भारतीय भारत के किसी भी क्षेत्र में अपने लिए प्रेम महसूस किया होगा, किसी अन्य देश में अलग-थलग महसूस किया होगा । 

वास्तव में, यह आंतरिक भावना राष्ट्रवाद का निर्माण करती है और एक राष्ट्र को एकजुट रखने में मदद करती है । एक एकीकृत राष्ट्रीयता की अवधारणा को बनाए रखने के लिए एक ऐसी भाषा की आवश्यकता है जिसे पूरा देश समझ सके, बोल सके और पढ़ सके और उर्दू ने इस जरूरत को पूरा किया । उर्दू के विकास और उत्थान में हिन्दू लेखकों और कवियों का बहुत बड़ा हाथ है। चाहे वह उर्दू शायरी हो या गद्य, आलोचना, शोध, नाटक, रिपोर्ताज, हिन्दू बुद्धिजीवियों की सेवाएं हर मोर्चे पर उर्दू भाषा और साहित्य को मिली हैं। 

मुंशी नवल किशोर, पंडित दया शंकर नसीम, पंडित बृज नारायण चकबस्त, प्रेम चंद, राम प्रसाद बिस्मल, महाराजा किशन चंद, तालूक चंद सहित हजारों हिन्दू बुद्धिजीवियों ने चमन उर्दू की सिंचाई में अपना खून ए दिल खर्च किया। आजादी के बाद रघुपति सहाय फारक गोरखपुरी, कुंवर महेंद्रसिंह बेदी सहर, राजेंद्र सिंह बेदी, गोपीचंद नारंग, जोगिंदर पाल, हरचरण चावला, सुरेंद्र प्रकाश, कृष्ण चंद्र, बलराज मेजा, रामानंद सागर, बलराज कोमल, पंडित बृज नारायण दत्तात्रेय कैफी, खुश्तर ग्रामी, अल्लामा सहर इश्काबादी, डॉ. ओम पर काश ज़ार अल्लामी, बशेश्वर प्रसाद मनवर, लाल चंद प्रार्थी, भगवान दास शोला, अमर चंद कैस जालंधरी, पंडित लभुराम जोश मलसियानी, पंडित बालमुकंद अर्श मलसियानी, रणबीर सिंह, नवीन चावला, फ़िकर तुन्स्वी, रामकृष्ण मुज़तर, के. अमरिंदर, जगन्नाथ आजाद, साहिर होशियार पुरी, ऋषि पटियालवी, सत्यानंद शाकिर, कृष्णा कुमारी शबनम, एस. आर रतन, काहन सिंह जमाल, सुदर्शन कौशल, नरेश चंद्र साथी, प्रेम आलम और सुरेश चंद शौक आदि ऐसे नाम हैं जो उर्दू के क्षितिज पर चमकते हैं। 

यहां कुछ हिंदू कवियों का परिचय दिया जा रहा है जिन्होंने उर्दू कवियों के बीच एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है और अपनी कविता के माध्यम से देश का नाम रोशन किया है। 

अभय राज सिंह शाद : नादून जिला हमीरपुर में 18 फरवरी 1914 को जन्मे, नौकरी के लिए चंडीगढ़ चले गए और उपायुक्त चंडीगढ़ के पद से सेवानिवृत्त हुए । कविता के अलावा, उन्होंने गद्य लेख भी लिखे । उनका कविता संग्रह गुल व शबनम के नाम से छपा। नमूने के तौर पर उनका यह शेर पेश है । 

बडी कैफ आवर थी वह ज़िन्दगी जो,

नजरे खारा बात होती रही ।

मैं जिस बात से शाद डरता रहा, 

अमूमन वही बात होती रही । 

आज़ाद गुलाटी : 25 जुलाई 1936 को नाभा, पंजाब में जन्म हुआ। सरकार कालेज नाभा के अंग्रेजी विभागध्यक्ष के पद पर नियुक्त हुए। आजाद साहब आधुनिक गजल विद्वान थे । उनके यह अशआर देखिए -

जब सोचता तो ज़ेरे क़दम सातों आसमां, 

जब देखना तो खुद को तहे आब देखना। 

क्या तजरबा है आँखों में सैलाब रोक कर, 

खुद सरजमीन ए दिल को ही सैराब देखना। 

बिहारी लाल बिहारी : 30 जुलाई 1965 को कुल्लू में जन्मे, शिमला में पढ़े और वहीं बस गए। हिमाचल सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए । नमूना ए कलाम निम्न है ... 

चमन वालों को क्या मालूम क्या कुछ होने वाला है, 

निगाहें बर्फ की रह रह के पडती हैं गुलिस्तां पर। 

रात-दिन चामा उन को हमने अरमानों के साथ, 

नाम अपना भी जुड़ा है उनके के अफसानों के साथ। 

बी. के. भारद्वाज कमर : 29 दिसंबर 1929 को जालंधर में जन्म हुआ, गवर्नमेंट कॉलेज, लुधियाना से अंग्रेजी में एम.ए. उत्तीर्ण किया। 1965 में हिमाचल सरकार की सेवा में शामिल हुए और शिमला सरकारी कॉलेज में अंग्रेजी विभाग के प्रमुख के रूप में काम किया। अबुल फसाहत पंडित लभुराम जोश मलसियानी के छात्र थें। उन्हें गद्य लिखने का भी शौक था । नमूना ए कमाम- 

भरोसा जिन को अपने आप पर हो, 

गुज़र जाते हैं वह हर इमतेहां से ।

अजब है मन्जिले राहे तलब भी, 

वहीं पर हैं चले थे हम जहां से ।

प्रकाश नाथ परवेज : 25 अक्टूबर 1930 को चंडीगढ़ में जन्मे, पंजाब के महालेखाकार कार्यालय, चंडीगढ़ में सहायक लेखा परीक्षा अधिकारी के रूप में कार्यरत थे । परवेज के कलाम में उच्च चिन्तन गुण दिखाई देते हैं, में सहजता और मानवता पाई जाती है। नमूना ए कलाम- 

आप के अहद की पहचान यही है शायद,

कोई प्यासा हो मगर उस को न पानी देना। 

सबा चली है तो महके हैं ज़ख्म फूलों के, 

बहार ए नाज ने जलवे दिखाए हैं क्या क्या।

धर्मपाल अकील - 20 नवंबर, 1932 को शिमला में जन्मे। हिमाचल प्रदेश के शिक्षण संस्थानों में काम करने के बाद, भाषा संस्कृत और विभाग हिमाचल प्रदेश के उर्दू विभाग से जुड़े। विभाग के मुशायरों, संगोष्ठियों और अन्य उर्दू कार्यक्रमों के आयोजन के साथ-साथ उन्होंने विभाग के उर्दू प्रकाशनों के संपादन का कार्य भी किया। 1984 में, वह विभाग द्वारा प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका फिक्र व फैन के संपादक बने। उनकी कविताओं का संग्रह खुन-ए-जिगर के नाम से प्रकाशित हुआ । नमूना ए कलाम- 

क्या जानिए हुआ है जमाने को आज क्या, 

दुनिया थी खुल्दज़ार अभी कल की बात है।

डी. कुमार : 15 जुलाई, 1927 को शिमला में जन्मे, उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा वहीं हासिल की और हिमाचल प्रदेश के जनसंपर्क विभाग में शामिल हो गए। आप आधुनिक रंग और समरसता के कवियों में से एक हैं। उनका एक शेर पेश है- 

भूल हुई जो बैठ गए हम उनके साए में एक पल, 

पत्थर क्यों बरसाती हैं यह शीश महल की दीवारें। 

राज नारायण राज़ : 27 अक्टूबर 1930 को दिल्ली में जन्मे, वे भारत सरकार की मासिक पत्रिका आज कल के संपादक थे। कविता और ग़ज़ल दोनों कहते थे । उनके स्वर में सादगी और सच्चाई का सुंदर संयोजन है। एक नए रंग की राज़ की प्रतीकात्मक कविता और उसके चरणों में कई और गुण छिपे हैं। नमूना ए कलाम- 

मुझे तलाश करेंगे नई रुतों में लोग, 

मैं गहरी धुन्ध में लिपटा हुआ जज़ीरा हूं।

राजेंद्रनाथ रहबर : 5 नवंबर 1931 को पठानकोट (पंजाब) में एक प्रसिद्ध वकील पंडित त्रिलोक चंद के घर पैदा हुए। एम. ए. एल. एल. बी. तक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने सरकारी सेवा में प्रवेश किया और कई वर्षों तक हिमाचल प्रदेश सरकार के लेखाकार कार्यालय में काम किया। सेवानिवृत्ति के बाद पठानकोट में वकालत करने लगे । आपकी कविता में रवानी और सलासत हैं । अशआर के दो संग्रह कलस और शाम ढल गई छप चुके हैं । हैं । इसके अलावा उन्होंने एक तज़किरा आगोश - ए - गुल नाम से संकलित किया । नमूना ए कलाम- 

मुकैयद हो न जाना जात के गुंबद में यारों, 

किसी रोज़न किसी दरवाज़े को वा छोड़ देना। 

राजेश कुमार ओज : पंजाब के होशियारपुर जिले के एक गांव में जन्मे। बीए के बाद आई पी एस की परीक्षा पास की। उन्होंने पुलिस विभाग में विभिन्न वरिष्ठ पदों पर कार्य किया, उसके बाद शिमला में डीआईजी पुलिस के पद पर रहे। नमूना ए कलाम- 

रह के गुलशन में भी तरसे हैं गुल ए तर के लिए,

यह मुकददर था तो क्या रोऐं मुक़ददर के लिए ।

सतनाम सिंह खुमार : 15 जुलाई 1935 को हरियाणा के भिवानी जिले में जन्म हुआ। पंजाब विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान में एम. ए करने के बाद गुरु नानक विश्वविद्यालय अमृतसर से पी. एच डी की । उसके बाद, उन्हें पिशिया कॉलेज, भिवानी में मनोविज्ञान पढ़ाने के लिए नियुक्त किया गया । कविता के दो संग्रह, लमहात का बहता दरिया और महसूस करो मुझ को प्रकाशित हुए । 

मैं कैसे बन्द कर लूं मुन्तजिर आंखों के दरवाज़े, 

मेरे दिल को ख्याल ए मुन्तज़िर सोने नहीं देता। 

बहारों का तबस्सुम और बरसातों की नम आंखें, 

खुमार उप कन बिछड़ जाने का गम सोने नहीं देता। 

सुरेश चंद शौक : 5 अप्रैल 1938 को जन्म हुए। अपनी उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद, हिमाचल प्रदेश में लेखा कार्यालय में लेखा परीक्षा अधिकारी के रूप में काम करना शुरू किया। वह बजम-ए-अदब शिमला के सचिव । नमूना ए कलाम निम्न है- 

ये और बात है, हम मुंह से कुछ नहीं कहते,

हर एक बात की लेकिन हमे खबर है मियां ।

सुरेंद्र पंडित सोज़ : 18 जुलाई 1937 को चंडीगढ़ में जन्म हुआ। वह अंग्रेजी दैनिक ट्रिब्यून के पत्रकार थे । उर्दू में ग़ज़लें और अंग्रेज़ी में कहानियाँ और निबंध लिखें । नमूना ए कलाम- 

सलाखें गर्म करो, जिस्म दाग कर देखो, 

मेरा वजूद किसी ग़म से खौलता ही नहीं। 

सुलक्षणा इंजुम : मेरठ यू. पी. में पैदा हुईं। वह लंबे समय तक अपनी हल्की-फुल्की कविताओं को जीवंत और आकर्षक मंत्रों के साथ मुशायरों में प्रस्तुत करती रहीं और उन्हें हमेशा दर्शकों से अच्छी सराहना मिली । नमूना ए कलाम- 

ग़म छुपाती रही ज़िन्दगी, मुस्कुराती रही ज़िन्दगी, 

दूर की एक आवाज़ पर, जां लुटाती रही ज़िन्दगी। 

शबाब ललित : भगवान दास शबाब ललित का जन्म 3 अगस्त 1933 को पंजाब में हुआ था । इतिहास और उर्दू में एम. ए. करने के बाद उन्हें केंद्र सरकार के सूचना एवं प्रसारण विभाग में फील्ड ऑफिसर के रूप में नियुक्त किया गया। कलाम के अनेक संग्रह प्रकाशित हुए । कवि बिशेश्वर मुनव्वर लखनवी के शिष्य रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । नमूना ए कलाम पेश है- 

छीन कर तुम ले गए अल्फाज़ का अमृत कलस, 

मैं वह शिव शंकर था ज़हरे मआनी पी गया ।

कृष्णा बिहारी नूर : 8 नवंबर 1925 को यु० पी० के लखनऊ में जन्म। वे बहुत अच्छी कविताओं का पाठ करते थे और उन्हें अपनी अनूठी शैली में प्रस्तुत करते थे। बोलने और पढ़ने दोनों की शैली प्रभावशाली थी । ग़ज़लों और कविताओं के दो संग्रह दुख सुख और तपस्या नाम से प्रकाशित हुए । नमूना ए कलाम निम्न है। 

हो के बेचैन मैं भागा किया आहू की तरह, 

बस गया था मेरे अन्दर कोई खुश्बू की तरह। 

इसी तरह हज़ारों हिन्दू कवियों ने उर्दू भाषा और साहित्य की अपनी शायरी के माध्यम से अतुलनीय सेवा की है, राष्ट्रीय एकता का संदेश दिया है और पूरे विश्व में देश का नाम रोशन किया है। 

आलेख : मोहम्मद राशिद खान

Share To:

Post A Comment: