जय श्री राधे कृष्ण 🌹🙏


आज के ये दो श्लोक मैंने  श्रीमद्भगवद्गीता के तीसरे अध्याय 'कर्मयोग' से लिए हैं ....


          

न कर्मणामनारंभान्नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते ।

न च सन्न्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति ॥ 

(अध्याय 3, श्लोक 4)


न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्‌ ।

कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः ॥ 

(अध्याय 3, श्लोक 5)


इन दोनों श्लोकों के भावार्थ : मनुष्य न तो बिना कर्म किए  कर्म-बन्धनों से मुक्त हो सकता है और न ही कर्मों के त्याग (सन्यास) मात्र से सफ़लता (सिद्धि) प्राप्त कर सकता है। 


कोई भी मनुष्य किसी भी समय में क्षण-मात्र भी कर्म किए बिना नहीं रह सकता है क्योंकि प्रत्येक मनुष्य प्रकृति से उत्पन्न गुणों द्वारा विवश होकर कर्म करता है।


सुप्रभात !  


पुनीत कुमार माथुर  

ग़ाज़ियाबाद

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