जय श्री कृष्णा 🌹🙏 


मित्रों आज का श्लोक मैंने लिया है श्रीमद्भगवद्गीता के नवें अध्याय 'राजविद्याराजगुह्ययोग' से। इस श्लोक में श्री कृष्ण ने बताया है कि किस प्रकार सेवा करें कि हम उन्हें पा सकें। 


मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।

मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः।।

(अध्याय 9, श्लोक 34)


इस श्लोक का अर्थ है : तू मुझमें ही मनवाला हो, मेरा ही भक्त हो, मेरा ही पूजन करनेवाला हो और मुझे ही नमस्कार किया कर। इस प्रकार चित्त को मुझमें लगाकर मेरे परायण -- शरण हुआ तू मुझ परमेश्वर को ही प्राप्त हो जाएगा। अभिप्राय यह कि मैं ही सब प्राणियों का आत्मा और परम स्थान हूँ। ऐसा जो मैं आत्मरूप हूँ तू उसी को प्राप्त हो जाएगा।  


सुप्रभात ! !


पुनीत कुमार माथुर 

ग़ाज़ियाबाद

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