नई दिल्ली : पुनीत माथुर। लड़के और लड़की के लिए शादी की न्यूनतम उम्र एकसमान करने की मांग को लेकर दिल्ली और राजस्थान हाईकोर्ट में लंबित याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर किये जाने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। याचिकाओं में कहा गया है कि शादी की उम्र में ये अंतर पितृसत्तात्मक सोच का परिचायक है।
दिल्ली हाईकोर्ट में यह याचिका भाजपा नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दायर की है। याचिका में कहा गया है कि युवतियों की शादी की उम्र 18 वर्ष करना भेदभाव के बराबर है। याचिका में कहा गया है कि युवक और युवतियों की शादी की न्यूनतम आयु में फर्क करना हमारे पितृसत्तात्मक समाज की मानसिकता को दर्शाता है।
इसके पीछे कोई वैज्ञानिक वजह नहीं है। यह प्रावधान युवतियों के साथ भेदभावपूर्ण है। याचिका में कहा गया है कि पुरुषों की शादी करने की उम्र 21 वर्ष है जबकि महिलाओं की शादी करने की उम्र 18 वर्ष है। यह प्रावधान लैंगिक समानता और लैंगिक न्याय के साथ साथ महिलाओं की गरिमा के खिलाफ है।
याचिका में कहा गया है यह एक सामाजिक सच्चाई है कि शादी के बाद महिला महिला को अपने पति से कम आंका जाता है और उसमें उम्र का अंतर और भेदभाव बढ़ाता है। कम उनकी पत्नी उम्मीद की जाती है कि वह अपने से बड़े उम्र के पति का सम्मान करें। याचिका में युवक और युवती दोनों की शादी करने की न्यूनतम उम्र एक समान 21 वर्ष करने की मांग की गई है।
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