🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏
मित्रों आज भी श्रीमद्भगवद्गीता के सोलहवें अध्याय 'दैवासुरसम्पद्विभागयोगः' से ये दो श्लोक ......
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः ।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् ॥
(अध्याय 16, श्लोक 21)
इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण बोले) काम, क्रोध तथा लोभ- ये तीन प्रकार के नरक के द्वार ( सर्व अनर्थों के मूल और नरक की प्राप्ति में हेतु होने से यहाँ काम, क्रोध और लोभ को 'नरक के द्वार' कहा है) आत्मा का नाश करने वाले अर्थात् उसको अधोगति में ले जाने वाले हैं। अतएव इन तीनों को त्याग देना चाहिए।
एतैर्विमुक्तः कौन्तेय तमोद्वारैस्त्रिभिर्नरः ।
आचरत्यात्मनः श्रेयस्ततो याति परां गतिम् ॥
(अध्याय 16, श्लोक 22)
इस श्लोक का भावार्थ : हे अर्जुन! इन तीनों नरक के द्वारों से मुक्त पुरुष अपने कल्याण का आचरण करता है (अपने उद्धार के लिए भगवदाज्ञानुसार बरतना ही 'अपने कल्याण का आचरण करना' है), इससे वह परमगति को जाता है अर्थात् मुझको प्राप्त हो जाता है।
आपका दिन शुभ हो !
पुनीत माथुर
ग़ाज़ियाबाद।
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