🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏 


मित्रों विगत कुछ दिनों से मैं श्रीमद्भगवद्गीता के सोलहवें अध्याय  'दैवासुरसम्पद्विभागयोगः' से चुनिंदा श्लोक आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ ...आज के ये दो श्लोक भी इसी अध्याय से ...


तानहं द्विषतः क्रुरान्संसारेषु नराधमान् ।

क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु ॥

(अध्याय 16, श्लोक 19)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण बोले) उन द्वेष करने वाले पापाचारी और क्रूरकर्मी नराधमों को मैं संसार में बार-बार आसुरी योनियों में ही डालता हूँ।


आसुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि ।

मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधमां गतिम् ॥

(अध्याय 16, श्लोक 20)


इस श्लोक का भावार्थ : हे अर्जुन! वे मूढ़ मुझको न प्राप्त होकर ही जन्म-जन्म में आसुरी योनि को प्राप्त होते हैं, फिर उससे भी अति नीच गति को ही प्राप्त होते हैं अर्थात्‌ घोर नरकों में पड़ते हैं।


आपका दिन मंगलमय हो ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

Share To:

Post A Comment: