भरा हिम्मतों से जिगर चाहिए,

नहीं मौत का कोई डर चाहिए।


मुझे मंजिलों की नहीं कोई फ़िक्र,

मुझे तो सुहाना सफ़र चाहिए।


सुकूं मिल सके जिसके साये में कुछ,

सहन में खड़ा इक शजर चाहिए।


समझ जो सके मेरे जज़्बात को, 

मुझे पारखी वो नज़र चाहिए।


जो सूखे शजर को हरा कर सके,

दुआओं में इतना असर चाहिए।


चुराओ न मेहनत से तुम जी कभी, 

तुम्हें कामयाबी अगर चाहिए।


जो इज़्ज़त की रोटी कमाकर के दे, 

इन हाथों में ऐसा हुनर चाहिए।


- पुनीत कुमार माथुर

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