🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏 


मित्रों कल के दो श्लोकों के आगे ये दो श्लोक भी श्रीमद्भगवद्गीता के पन्द्रहवें अध्याय 'दैवासुरसम्पद्विभागयोगः' से ही .....


आशापाशशतैर्बद्धाः कामक्रोधपरायणाः ।

ईहन्ते कामभोगार्थमन्यायेनार्थसञ्चयान् ॥

(अध्याय 16, श्लोक 12)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण बोले) वे आशा की सैकड़ों फाँसियों से बँधे हुए मनुष्य काम-क्रोध के परायण होकर विषय भोगों के लिए अन्यायपूर्वक धनादि पदार्थों का संग्रह करने की चेष्टा करते हैं।


इदमद्य मया लब्धमिमं प्राप्स्ये मनोरथम् ।

इदमस्तीदमपि मे भविष्यति पुनर्धनम् ॥

(अध्याय 16, श्लोक 13)


इस श्लोक का भावार्थ : वे सोचा करते हैं कि मैंने आज यह प्राप्त कर लिया है और अब इस मनोरथ को प्राप्त कर लूँगा। मेरे पास यह इतना धन है और फिर भी यह हो जाएगा।


शुभ दिवस ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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