🙏राधे राधे 🙏
आप सभी को प्रणाम मित्रों !
मित्रों विगत कुछ दिनों से मैं श्रीमद्भगवद्गीता के सातवें अध्याय 'ज्ञान विज्ञान योग' से चुनिन्दा श्लोक यहां प्रस्तुत कर रहा हूँ, आज का श्लोक भी इसी अध्याय से ही है ....
त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः सर्वमिदं जगत् ।
मोहितं नाभिजानाति मामेभ्यः परमव्ययम् ॥
(अध्याय 7, श्लोक 13)
इस श्लोक का अर्थ है : (भगवान श्री कृष्णा कहते हैं) - गुणों के कार्य रूप सात्त्विक, राजस और तामस- इन तीनों प्रकार के भावों से यह सारा संसार- प्राणिसमुदाय मोहित हो रहा है, इसीलिए इन तीनों गुणों से परे मुझ अविनाशी को नहीं जानता।
पुनीत माथुर
ग़ाज़ियाबाद
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