🙏राधे राधे 🙏

आप सभी को प्रणाम मित्रों !

मित्रों आज का श्लोक भी मैंने  श्रीमद्भगवद्गीता के छठे अध्याय 'आत्मसंयम  योग' से ही लिया है।

सुहृन्मित्रार्युदासीन मध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु।
साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते ॥
(अध्याय 6, श्लोक 9)

इस श्लोक का अर्थ है : (भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं) सुहृद्, मित्र, वैरी, उदासीन, मध्यस्थ, द्वेष्य, बन्धु, धर्मात्मा और पापियों में भी समान भाव रखने वाला अत्यन्त श्रेष्ठ है।

आपका दिन शुभ हो !

पुनीत माथुर 
ग़ाज़ियाबाद
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