एक ग़ज़ल....
दुआ ग़र दे नहीं सकते तो ताना ही ज़रा दे दो,
करो ऐसा ग़मों का तुम खज़ाना ही ज़रा दे दो.
हमें इक बार तो देखो उन्ही क़ातिल निगाहों से,
हमें फ़िर क़त्ल होने का बहाना ही ज़रा दे दो.
जहाँ से दूर तक देखें तो रौशन रास्ते दीखें,
किसी ऊंचे मकाँ में आशियाना ही ज़रा दे दो.
नए कुछ ज़ख्म मिल जाएं तुम्हारे नाम पर हमको,
मुहब्बत कर सकें तुमसे बहाना ही ज़रा दे दो.
भटकते दर्द हैं मेरे, सिसकते हैं अकेले में,
थमे आवारगी उनकी ठिकाना ही ज़रा दे दो.
कभी कुछ ऐसा कर डालो कि दिल के टुकड़े हो जाएं,
नहीं जो भूल पाएं हम फ़साना ही ज़रा दे दो.
तुम्हारा साथ ही मिल जाए, मंज़िल चाहिए किसको,
मुक़म्मल सा सफ़र कोई सुहाना ही ज़रा दे दो.
पुनीत कुमार माथुर |
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