नई दिल्लीः पुनीत माथुर । पुष्कर सिंह धामी को उत्तराखंड की कमान देकर भाजपा ने बड़ा संदेश देते हुए विपक्षी दलों के सियासी गणित को भी बिगाड़ने का काम किया है। उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री के रूप में धामी को ऐसे समय राज्य की कमान सौंपी जब पार्टी अगले साल के शुरू में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रही है,प्रदेश के खटीमा से विधायक 45 वर्षीय धामी के लिए मुख्यमंत्री का पद उनके राजनीतिक करियर का अब तक का सर्वोच्च बिन्दु है और इसके साथ ही अपने पूर्ववर्तियों द्वारा छोड़ी गईं समस्याओं का अंबार भी उनके हिस्से आया है, इन समस्याओं को ठीक करने के लिए उनके पास बहुत ही कम वक्त बचा है।

उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री के रूप में धामी को चुनकर भाजपा ने चुनावी राज्य में पार्टी की नैया पार लगाने के लिए एक युवा नेता पर भरोसा व्यक्त जताया है, धामी के समक्ष मुख्य चुनौती 2022 में लगातार दूसरी बार भाजपा को जीत दिलाने की होगी, अब देखना है कि वे पार्टी के भरोसे पर कितना खरा उतरते हैं,पर जिम्मेदारी कठिन है, लेकिन धामी ने खुद को भाजपा विधायक दल का नेता चुने जाने के कुछ मिनट बाद ही उनके जैसे साधारण कार्यकर्ता पर विश्वास व्यक्त करने और इस तरह का महत्वपूर्ण दायित्व सौंपने के लिए पार्टी नेतृत्व का धन्यवाद व्यक्त किया।

उत्तराखंड के नये सीएम पुष्कर सिंह धामी से जब आगे की चुनौतियों के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि वह हर किसी के सहयोग से चुनौतियों से निपटने को लेकर आश्वस्त हैं, उन्होंने अपने पूर्ववर्तियों द्वारा किए गए कार्य को आगे बढ़ाने और पूर्ण समर्पण के साथ लोगों की सेवा करने का वादा भी किया।

धामी 2012 से लगातार दो बार खटीमा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं,खटीमा उत्तराखंड में कुमाऊं क्षेत्र के उधम सिंह नगर जिले में है. धामी का जन्म सीमावर्ती पिथौरागढ़ जिले के कनालीचिना गांव में में हुआ था. उनके पिता एक सैनिक थे, धामी ने बाद में खटीमा को अपनी ‘‘कर्मभूमि” बना लिया, वह महाराष्ट्र के राज्यपाल और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के करीबी बताए जाते हैं जो उनके राजनीतिक गुरु रहे हैं, धामी कानून की डिग्री के साथ स्नातकोत्तर हैं और उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन में डिप्लोमा पाठ्यक्रम भी किया है।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से प्रशिक्षित होने के साथ ही पुष्कर सिंह धामी ने कानून की पढ़ाई की, धामी बचपन से ही आरएसएस से जुड़ गए थे, वे 33 वर्ष तक संघ के साथ रहते हुए राष्ट्र सेवा के कार्यों से जुड़े रहे, 10 वर्ष वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में सेवा दी, युवा मोर्चा में भी दो बार वे प्रदेश अध्यक्ष के पद पर रहे, उन्होंने प्रदेश के कोने-कोने में घूमकर युवाओं को न केवल एकजुट किया।



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