जय श्री राधे कृष्णा 🌹🙏 


मित्रों आज का श्लोक मैंने लिया है श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय 'सांख्ययोग' से। इस श्लोक में श्री कृष्ण एक उदाहरण के द्वारा बता रहे हैं कि मृत्यु शरीर की होती है आत्मा तो फिर नए शरीर को धारण कर लेती है । 


वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि । 

तथा शरीराणि विहाय जीर्णा- न्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥

(अध्याय 2, श्लोक 22)


इस श्लोक का अर्थ है : जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नए वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होता है। 


सुप्रभात ! !


पुनीत कुमार माथुर 

ग़ाज़ियाबाद

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