🙏राधे राधे 🙏
आप सभी को प्रणाम !
मित्रों आज का श्लोक मैंने लिया है श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय 'सांख्ययोग' से।
प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायते।
प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धिः पर्यवतिष्ठते॥
(अध्याय 2, श्लोक 65)
इस श्लोक का अर्थ है : अपने अन्तःकरण को वश में करने वाला कर्मयोगी साधक रागद्वेष से रहित अपने वश में की हुई इन्द्रियों के द्वारा विषयों का सेवन करता हुआ अन्तःकरण की प्रसन्नता को प्राप्त हो जाता है। प्रसन्नता प्राप्त होने पर साधक के सम्पूर्ण दुःखों का नाश हो जाता है और ऐसे प्रसन्नचित्त वाले साधक की बुद्धि निःसन्देह बहुत जल्दी परमात्मा में स्थिर हो जाती है।
आपका दिन शुभ हो !
पुनीत कृष्णा
ग़ाज़ियाबाद
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