ग़ाज़ियाबाद। मोरटा निवासी किसान पुत्र अमित त्यागी ने रविवार को 1857 की क्रांति और शहीदों को याद किया। अमित त्यागी ने कहा कि आज का ही दिन वह दिन था जब सैकड़ों सालों की गुलामी सहने वाले भारत का स्वाभिमान एक बार फिर जाग उठा था। अंग्रेजों की नीतियों से आजादी के लिए प्रत्येक वर्ग को लड़ने की प्रेरणा देने वाली क्रांति इसी दिन शुरू हुई थी। यह भारत में महाभारत के बाद लड़ा गया सबसे बड़ा युद्ध था। इस संग्राम की मूल प्रेरणा स्वधर्म की रक्षा के लिए स्वराज की स्थापना करना था।
अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की पहली चिंगारी क्रांतिधरा मेरठ से फूटी। 10 मई 1857 को मेरठ में सबसे पहले अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह हुआ। मेरठ को अंग्रेज सबसे सुरक्षित छावनी मानते थे, उन्हें इस बात का बिलकुल अहसास नहीं था कि विद्रोह यहीं से होगा। 10 मई 1857 की सुबह अंग्रेज अफसरों के यहां कोई हिंदुस्तानी काम करने नहीं गया। दोपहर तक सूचना फैल गई कि विद्रोह होने वाला है। शाम होते होते विद्रोह के स्वर तेज हो गए। इसके बाद अंग्रेजों पर हमला बोल दिया गया।
यह स्वाधीनता हमें बिना संघर्ष, बिना खड़ग-ढाल के नहीं मिली है अपितु लाखों हुतात्माओं द्वारा इस महायज्ञ में स्वयं की आहुति देने से मिली है। एसी कमरों में बैठकर, सब्सिडी वाली शराब पीकर ‘भारत में आजादी’ की मांग करना बहुत आसान लगता है लेकिन जो हमारे पास आज है, उसके लिए हमारे पूर्वजों ने क्या-क्या किया है, इसे महसूस करना संभव नहीं।
वरिष्ठ समाजसेवी एवं किसान पुत्र अमित त्यागी ने बताया कि आजाद भारत में जन्म लेने वाले लोग समझ ही नहीं सकते कि गुलामी क्या होती है। उस गुलामी को न मैं महसूस कर सकता हूँ और ना ही आप, लेकिन हम इतना जरूर कर सकते हैं कि अपने पूर्वजों के संघर्ष का सम्मान करें।
आज 160 साल हो गए उस क्रांति को, माना कि लंबा समय हो गया है लेकिन संपूर्ण स्वतंत्रता आंदोलन की आधारशिला तैयार करने वाली उस यशस्वी क्रांति को पूरी तरह से भूल जाना उचित नहीं होगा। आइए, नमन करें उन्हें जिन्होंने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की नींव तैयार करते हुए धर्म, जाति, लिंग, वर्ग, वर्ण, श्रेणी इत्यादि से ऊपर उठकर राष्ट्र को सर्वोपरि माना। याद रखिए, वे कोई और नहीं थे बल्कि हमारे और आपके परिवारों के लोग ही थे।
अमित त्यागी ने बताया कि यदि आजादी के लिए लड़े हमारे योद्धाओं के पास पुराने समय में मोबाइल और सोशल मीडिया होता तो हम केवल सोशल मीडिया पर ही लड़ते रहते कभी सड़कों पर उतरने की और आजादी को पाने की हिम्मत भी नहीं करते और हम आज भी गुलाम होते ...जैसे कि आज का युवा भटका हुआ है... सर्वप्रथम राष्ट्र को सर्वोपरि मानते हुए राष्ट्रभक्ति की भावना से सभी युवाओं को एक साथ आना चाहिए यदि कोई व्यक्ति देश के विरोध में राष्ट्र के विरोध में बोलता है तो उसकी नागरिकता तुरंत खत्म करके उसको आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान होना चाहिए।
1857 की क्रांति को शुरू करने वाले सभी वीर योद्धाओं तथा उसे अंजाम तक पहुंचाने वाले इतिहास के पृष्ठों में गुम हो चुके प्रत्येक क्रांतिपुरोधा को पुनः नमन और वंदन।
Share To:

Post A Comment: