बिहार राज्य में जाति आधारित गणना सोमवार को सार्वजनिक की गई। यह रिपोर्ट नितीश कुमार एवम लालू यादव की मिलीजुली सरकार द्वारा पेश की गई। जिसमे विपक्ष की जाति के नाम पर देश को बांटने की साजिश सामने आई। 

भारत में जातिगत गणना ब्रिटिश काल में 1931 में की गई थी। यह गणना कांग्रेस सरकार द्वारा भी 2011 में की गई थी। इस गणना से समाज में भय का माहौल उत्पन हुआ। जिसमे उन्हें पता चलेगा कि उनकी संख्या समाज में घट रही है। तब उस समाज के लोग अपनी संख्या बढ़ाने का तेजी से प्रयास करेंगे। इससे देश की आबादी में तेजी से इजाफा होगा। जिससे जनसंख्या का संतुलन भी बिगड़ सकता है। जिससे राष्ट्र के संसाधनों पर अधिक भार पड़ेगा और देश को भारी नुकसान भी होगा। 

इसके अलावा इस जातीय गणना से देश का सामाजिक तानाबाना बिगड़ने का भी खतरा है। 1951 में देश के  ग्रहमंत्री सरदार पटेल ने भी यह बात कह कर जातिगत गणना का प्रस्ताव ख़ारिज कर दिया था।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भी कहा गया कि यह विपक्ष द्वारा अपने भ्रष्टाचार को छिपाने की कोशिश है। जिससे सभी समाज के लोगो का विकास नहीं किया जा सके। सिर्फ एक ही समाज का विकास किया जाए। जिससे देश को बहुत बडा नुकसान उठाना पड़ सकता है और देश में अराजकता की स्थिति उत्पन हो सकती है। इसलिए देश में जाति के नाम पर गणना बन्द होनी चाहिए।


अभिषेक राष्ट्रवादी 

(बिलारी) मुरादाबाद

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