पोला जिसे बैल पोला, पिठोरी अमावस्या, मोठा पोला एवं तनहा पोला भी कहते हैं, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के किसानों का लोकप्रिय त्यौहार है। भादों माह की अमावस्या के  दिन यह पर्व मनाया जाता है। इस समय तक किसान अपनी बुआई, रोपाई एवं निंदाई कार्य पूर्ण कर चुका होता है। इसके बाद वह अपने सर्वाधिक उपयोगी पशु बैल के प्रति धन्यवाद अर्पित करते हुए उसके पूरे साज-श्रृंगार के साथ अपने बैलों की पूजा-अर्चना करता है।

मान्यता है कि इसी दिन खेतों में धान अपना गर्भधारण करता है जिसके कारण खेतों में इस दिन जाना वर्जित माना जाता है। इसके पीछे एक मान्यता ये भी है की भगवान कृष्ण जब छोटे थे तब उन्हें मारने के लिए कंस ने पोलासुर नामक असुर को भेजा था जिसे बालक कृष्ण ने मार दिया था, वो दिन भादों माह की अमावस्या का दिन था, इस दिन से इसे पोला कहा जाने लगा।

इस पर्व में गांव की महिलाएं मिट्टी के छोटे से घड़े (पोला) को परम्परागत रिवाजों के साथ विसर्जित करती हैं, बच्चे मिट्टी के बैलों को प्रतीकात्मक रूप से सजाकर पूजा करने के बाद उनसे खेलते हैं, गांव में बैल प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है जिसमें समस्त किसान अपने बैलों का श्रृंगार कर प्रतियोगिता में शामिल होते हैं।

महाराष्ट्र में ये त्यौहार दो दिनों तक मनाया जाता है वहां पोला के पहले दिन को मोठा पोला कहते हैं एवं इसके दूसरे दिन को तनहा पोला कहा जाता है।

आलेख : किरण सोनी, बालोद (छत्तीसगढ़)

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