एक ग़ज़ल... 


करो तौबा शरारत से कभी तो,

मिलो हमसे शराफ़त से कभी तो.


न करते इश्क़ ग़र इतना ही डर था,

निकल भी आओ दहशत से कभी तो.


खिलौना है ये शीशे का, संभालो

हमारा दिल हिफ़ाज़त से कभी तो.


बुरा हो वक्त तो सब छोड़ देते, 

लड़ो ऐसी रिवायत से कभी तो.


मिला करते नहीं हैं प्यार से हक़,

झटक भी लो  बग़ावत से कभी तो.


हमेशा तोलना दौलत से हर शै,

कि बाज़ आओ तिज़ारत* से कभी तो.


बदल जाएगी बदक़िस्मत की क़िस्मत,

करो कोशिश सआदत*  से कभी तो.


तिज़ारत - व्यापार 

सआदत - अच्छाई, भलाई 

पुनीत कुमार माथुर


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