🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏 


मित्रों आज भी श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय सत्रह 'श्रद्धात्रयविभागयोग' से ही ये दो श्लोक .....


आहारस्त्वपि सर्वस्य त्रिविधो भवति प्रियः ।

यज्ञस्तपस्तथा दानं तेषां भेदमिमं शृणु ॥

(अध्याय 17, श्लोक 7)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से बोले) -भोजन भी सबको अपनी-अपनी प्रकृति के अनुसार तीन प्रकार का प्रिय होता है। और वैसे ही यज्ञ, तप और दान भी तीन-तीन प्रकार के होते हैं। उनके इस पृथक्‌-पृथक्‌ भेद को तू मुझ से सुन।


आयुःसत्त्वबलारोग्य सुखप्रीतिविवर्धनाः ।

रस्याः स्निग्धाः स्थिरा  हृद्या  आहाराः  सात्त्विकप्रियाः ॥

(अध्याय 17, श्लोक 8)


इस श्लोक का भावार्थ : (श्री भगवान्‌ बोले) - आयु, बुद्धि, बल, आरोग्य, सुख और प्रीति को बढ़ाने वाले, रसयुक्त, चिकने और स्थिर रहने वाले (जिस भोजन का सार शरीर में बहुत काल तक रहता है, उसको स्थिर रहने वाला कहते हैं।) तथा स्वभाव से ही मन को प्रिय- ऐसे आहार अर्थात्‌ भोजन करने के पदार्थ सात्त्विक पुरुष को प्रिय होते हैं।


आपका दिन शुभ हो ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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