कुछ दिनों से मन में बहुत विचार आ रहे हैं कि हमारे ऋषि मुनियों ने अपने जीवन काल में मानव जाति के लिये बहुत कुछ किया या मैं इस प्रकार कहूँ तो गलत नहीं होगा कि हमारे ऋषि मुनियों ने अपना पूरा जन्म ही मानव जाति के कल्याण में लगा दिया । लेकिन जब कुछ लोगों से ये सुनने को मिलता है कि सभी खोजें दूसरे लोगों ने कीं, हमारे ऋषि मुनियों का कोई योगदान नहीं है तो मन मे बहुत पीड़ा का अनुभव होता है। 

उदाहरण के तौर पर देखिये की हमें पढ़ाया गया कि गोल चक्के का अविष्कार विदेशियों ने किया तो मन में प्रश्न उठता है कि रामायण, महाभारत में रथों में गोल चक्के नहीं थे क्या ? और  जिस शून्य का जन्मदाता हिंदुस्तान है और जिसके बिना गिनती अधूरी है क्या वह गोल नहीं है ? 

ऐसा ही एक प्रश्न मन में आता है जिस पर आज मैं अपने विचारों को आप सभी के बीच ले कर आया हूँ कि सप्ताह के दिनों के नाम किसने दिए और क्या इसके पीछे कोई विज्ञान है ? एक प्रश्न और मन में आता है कि रविवार के बाद सोमवार ही क्यों आता है,  मंगलवार या बुधवार क्यो नहीं  आता। इस प्रकार के प्रश्न पर मैं अपने विचारों को आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूँ।

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि हमारे वेदों में ब्रह्मांड और इस धरती के बारे में बहुत विस्तार से  लिखा गया है। हनुमान चालीसा में तो पृथ्वी से सूर्य की दूरी का वर्णन दिया हुआ है, आज नासा वाले भी मानते हैं कि यह दूरी लगभग बिल्कुल सही है। 

वेदों में ज्योतिष को नेत्र माना गया है और 7 ग्रहों, 2 छाया ग्रहों और 27 नक्षत्रों का भी वर्णन मिलता है। चलिए जानते हैं कि  सप्ताह के दिनों के नाम कैसे बने।

ज्योतिष आचार्य सुमन्त शर्मा 

सप्ताह के दिनों के नामों को भारत वर्ष ने ही दिया है। ये हमारे ऋषियों की ही देन है और ये ग्रहों  की कक्षा पर आधारित हैं जिसका उपयोग कई जगह किया जाता है। कैसे वो देखिये, अंतरिक्ष में सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा अपनी कक्षा में रहकर करते हैं जिसमें आज तक एक सेकिंड का फर्क भी नहीं आया है। 

अब अगर हम देखें कि सूर्य से आगे कौन से ग्रह की कक्षा है। वह इस प्रकार हैं सूर्य के बाद शुक्र की कक्षा आती है फिर बुध,चंद्रमा (पृथ्वी), शनि, बृहस्पति और मंगल की कक्षा आती है। यह ग्रह हमेशा अपनी कक्षा में रहकर एक निश्चित गति से सूर्य का चक्कर लगाते हैं। हर ग्रह की अपनी-अपनी गति है।

एक दिन में 24 घण्टे होते हैं यह तो हम सभी जानते हैं 12 घण्टोंं   का दिन और 12 घण्टोंं की रात होती है। 

दिन और रात कम या ज्यादा होती रहती है यानी गर्मियों में दिन बड़े और राते छोटी होती हैं और सर्दियों में राते बड़ी होती है और दिन छोटे होते हैं लेकिन एक दिन और रात 24 घण्टोंं की ही रहती है। ज्योतिष शास्त्र में एक दिन में 24 होरा होती हैं यानी कि एक होरा 1 घंटे की होती है 12 होरा दिन की और 12 होरा रात्रि की 1 घंटे का लगभग समय होता है क्योंकि जब दिन बड़ा और रात छोटी होगी तो होरा का समय कुछ कम या ज्यादा होता है ।

होरा को निकालने की विधि भी बहुत आसान है। सूर्य उदय से सूर्य अस्त के समय को 12 से भाग दें यानी मान लें कि सूर्य उदय सुबह 6 बजे और अस्त शाम को 6 बजे हो तो 12 घंटे होते हैं और यदि हम इसको 12 से भाग दें तो 1 घंटे की एक होरा होगी ठीक इसी प्रकार रात्रि की होरा भी निकलेगी । सूर्य उदय के समय जिस ग्रह की पहली होरा होगी वह ग्रह ही उस दिन का स्वामी होगा।

मान लीजिए कल रविवार है,  सूर्य उदय के साथ पहली होरा सूर्य की होगी और अगली होरा जैसा कि चार्ट में ग्रहों की स्थिति लिखी गई है उसी क्रम के अनुसार अगला ग्रह शुक्र है और फिर बुध होरा इसी प्रकार बदलती रहेगी । अगले दिन की पहली होरा निकालने के दो तरीके हैं,  एक तो 25वीं होरा हम गिनती कर लें तो आप देखेंगे कि 21वीं  होरा मंगल की है 22वीं सूर्य की,  23वीं शुक्र की और 24वीं बुध की। सूर्य उदय के समय 25वीं होरा चंद्रमा की होगी यानी सोमवार या monday. 

अब दूसरा तरीका भी समझते हैं, जिस ग्रह की पहली होरा है कक्षा के चार्ट में उस ग्रह से आगे के 2 ग्रहों को छोड़कर कर जो तीसरा ग्रह होगा वह अगले दिन का स्वामी होगा। देखिये सूर्य से आगे शुक्र और बुद्ध, छोड़िये तो क्या आया चंद्र, यानी सोमवार अब चंद्रमा से आगे 2 छोड़िये शनि और बृहस्पति को छोड़िये तो मंगल इस प्रकार सभी दिनों के नाम आते रहते हैं।

ज्योतिष आचार्य सुमन्त शर्मा, नई दिल्ली ।

9811339744, 9811339744, 9354915859, 9654545413

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