🙏राधे राधे 🙏

आप सभी को प्रणाम!

आज का श्लोक भी मैंने लिया है  श्रीमद्भगवद्गीता के पांचवे अध्याय 'कर्म संन्यास योग' से । 

ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते।
आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः॥
(अध्याय 5, श्लोक 22)

इस श्लोक का अर्थ है : (श्री कृष्ण भगवान कहते हैं) इन्द्रिय तथा विषयों के संयोग से उत्पन्न होने वाले सभी भोग दुःख उत्पन्न करने वाले ही हैं। इसलिए हे अर्जुन! इन आदि-अन्त वाले (अनित्य) भोगों में, बुद्धिमान पुरुष नहीं लिप्त होते हैं

आपका दिन मंगलमय हो !

पुनीत कृष्णा 
ग़ाज़ियाबाद
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