नई दिल्ली : पुनीत माथुर। ’शख़्सियत’ में हम आज आपका परिचय करवा रहे हैं बहुमुखी प्रतिभा की धनी कंचन माला ’अमर’ जी से। मूलतः मुज़फ्फरपुर (बिहार) की रहने वाली कंचन जी एक लंबे समय से दिल्ली स्थित राजकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में विज्ञान शिक्षिका के रूप में अध्यापन कार्य कर रही हैं।
कंचन जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुज़फ्फरपुर से ही प्राप्त की। महंथ दर्शनदास महिला महाविद्यालय, मुज़फ्फरपुर से बी-एससी (केमिस्ट्री ऑनर्स) और पोस्ट ग्रेजुएशन (केमिस्ट्री) बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय से करने के उपरांत उन्होंने महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक से बीएड व एमएड किया। वर्तमान में वह वनस्थली विद्यापीठ से शिक्षाशास्त्र में शोधकार्य कर रही हैं।
संगीत व नृत्य में रुझान के चलते कंचन जी ने प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद से बीए (कंठ संगीत) तथा प्राचीन कला केन्द्र, चंडीगढ़ से एमए (कंठ संगीत) किया। उन्होंने प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद से कत्थक नृत्य में बीए भी किया।
बचपन से ही कंचन जी सांस्कृतिक व सामाजिक गतिविधियों में आगे रहीं। वो राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) व राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) से जुड़ी रहीं साथ ही उन्होंने वाद-विवाद प्रतियोगिताओं, भाषण प्रतियोगिताओं, संस्कृत संभाषण, संगीत प्रतियोगिताओं में भाग लेकर बहुत से पुरस्कार जीते।
कॉलेज टाइम में वह छात्र राजनीति में भी सक्रिय रहीं। इसी दौरान 1988 से 1998 तक वो रेडियो व टीवी आर्टिस्ट के रूप में भी सक्रिय रहीं।
कंचन जी एक लेखिका, कवयित्री और लोकप्रिय शायरा हैं।उत्तराखंड से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका ’प्रेरणा-अंशु’ में उनकी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं।
आइए आनंद लेते हैं उनकी कुछ रचनाओं का....
कविता : जन्म मरण के बंधन में
जन्म मरण के बंधन में
सुख और वैभव के रंजन में,
हमने अब तक जो पाया है
क्या उसका क़र्ज़ चुकाया है ।
माँ बाप जो पालन करते हैं
ख़्याल जो सबका रखते हैं,
क्या उनके किये को माना है
क्या उनका क़र्ज़ उतारा है ।
दिखाए जो रस्ते गुरुओं ने
क्या उस पर हम चल पाएं हैं,
उनके अथक परिश्रम का
क्या समुचित मूल्य चुकाए हैं ।
प्रभु ने हमको दुनिया में
भेजा करने सत्कर्मों को,
क्या उन सत्कर्मों के रस्ते पर
हम और तुम चल पाए हैं ।
ग़ज़ल...
वक़्त की जंजीर रूककर देख लो,
तोड़ता है कौन मुड़कर देख लो।
अब मुसीबत में बुलाकर देख लो,
सब मुकर जाएंगे अक्सर देख लो।
जब ये उभरे दर्द जीवन में सुनो,
होंगे कम ये मुस्कुराकर देख लो।
बालपन में मन ये देखो फूल सा,
बचपने को यूं जगा कर देख लो।
दर्द में पलते जो हैं हर रोज़ यूं,
उनके जीवनदीप बनकर देख लो।
सच तो सच है यह भी देखो जान लो,
झूठ को चाहे सजाकर देख लो।
दिल में तो हरदम रहोगे तुम सनम,
बस ये इक वादा निभाकर देख लो।
ग़ज़ल...
कहीं कोई दिलकश नज़ारा न था,
फलक पर हमारा सितारा न था।
चले जा रहे थे हम तो मगर,
सफर मे कोई भी हमारा न था।
निगाहें मेरी हैं तलाशें उन्हीं को,
कोई उनसे बढ़कर सहारा ना था।
सफर में मिले थे हंस कर कभी,
मगर वो कभी मेरा यारा न था।
क्यूं अफसोस करना किसी का कभी,
कि वो मेरी किस्मत का तारा न था।
आना और आते ही जाने की बात,
हमें ये तरीका गवारा न था।
हमेशा ही देखा किए बेरुखी,
पर उनके बिना भी गुजारा न था।
लुटाते रहे हम दिलोंजान यहां,
भले ये चमन तो हमारा ना था।
जो साहिल पे पैरों से लिपटी लहर,
मेरे दिल ने उसको पुकारा न था।
ग़ज़ल...
जीवन नैया को आगे ले जाना है,
भंवरों से लड़कर ही मंज़िल पाना है।
इस जग में आ गए हैं तो अब जीना है,
ग़म को तो हमको ये ही बतलाना है।
जब हम तुम यूं मिल जाएंगे इक दिन तो,
फिर तो हरदम ह॔सना औ मुस्काना है।
न्यारे हो तुम जान से बढ़कर प्यारे हो,
क्या तुमको ये अब भी यूं जतलाना है।
सुख औ दुख जीवन के ही दो पहलू हैं,
फिर क्यूं उसके लिए तो यूं घबराना है।
सबको ही अपना समझो औ मानो तो,
जीवन में फिर सुख ही सुख को आना है।
गैरों के दुख से ना नज़रें फेरो तो,
उनके भी जीवन को तो महकाना है।
गीत : ’बावरा मन’
ऐ मन बावरा तू कित जा रहा...
ये आवारा मन तो माने ना बंधन,
ढूंढे ये पल पल अपना तो संग दिल ।
ऐ मन बावरा तू कित जा रहा...
तुझको तो डर है रुसवाइयों का,
मैं तो हूँ जानूं अपने ही मन का ।
ऐ मन बावरा तू कित जा रहा...
मन की लगन तो लागी है तुमसे,
तेरे दरस को तो नैना ये तरसे ।
ऐ मन बावरा तू कित जा रहा...
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