उर्दू जो आज व्यावहारिक रूप से मुसलमानों की भाषा बन गई है, पहले यह केवल मुसलमानों की ही नहीं बल्कि हिंदुओं और सिखों की भी भाषा थी। यहां तक कि आज़ादी से पूर्व अंग्रेज़ भी इस भाषा को विशेष रूप से सीखते थे। यह एक निर्विवाद तथ्य है कि उर्दू भाषा की उन्नति हर युग में विभिन्न धर्मों के लोगों द्वारा की जाती रही है । इसके विकास और प्रचार में हिंदुओं और सिखों ने भी अपना खून-ए-जिगर खर्च किया है और हो भी क्यों न, क्योंकि उर्दू का मूल जन्मस्थान भारत ही है ।यह कोई विदेशी भाषा नहीं है और न ही यह किसी संप्रदाय विशेष की भाषा है। यह विशुद्ध रूप से भारतीय भाषा है इसलिए उर्दू सबसे लोकप्रिय इंडो-आर्यन भाषाओं में से एक है। उर्दू की यही विशेषता उर्दू को एक सामान्य सभ्यता से जोड़ती है । इस भाषा ने जहाँ एक ओर साम्प्रदायिक सौहार्द, आपसी एकता और भाईचारे के गीत गाए, वहीं दूसरी ओर इसने देश की स्वतंत्रता और इसके विकास में सक्रिय रूप से भाग लिया । उर्दू की सभी विधाओं के सामान्य अध्यन से पता चलता है कि मुसलमानों के अलावा, हिंदू, सिख और ईसाई भी इसकी उन्नति में सक्रिय रूप से भाग लेते थे। आज़ादी से पहले, उर्दू गैर-मुस्लिमों की एक बड़ी आबादी के विचार और अभिव्यक्ति का रचनात्मक माध्यम थी। इसमें वे अपने हृदय की बातों और हृदय की भावनाओं को अभिव्यक्त करते थे। कविता हो या गद्य सभी विधाओं में गैर - मुस्लिम लेखकों की एक लंबी सूची है, जिनके रचनात्मक प्रयासों को किसी भी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। गैर - मुस्लिम लेखकों की अकादमिक उपलब्धियों, शोध और आलोचनात्मक समझ का दायरा बहुत विस्तृत है । उन के उर्दू से मानसिक और बौद्धिक लगाव का एक मुख्य कारण यह है कि यह एक धर्मनिरपेक्ष भाषा है और गंगा - जमनी सभ्यता की प्रतीक है।

कविता हो या गद्य और कथा साहित्य हो या गैर-कथा साहित्य हर विधा में, गैर - मुस्लिम लेखकों ने बहुमूल्य सेवाएं प्रदान की हैं। इन लेखकों की सेवाओं का दायरा इतना व्यापक और इतना विविध है कि उन्हें एक लेख में शामिल करना संभव नहीं है । आज के इस लेख में हम कुछ गैर - मुस्लिम लेखकों का जिक्र करेंगे जिन्होंने उपन्यास विधा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हम यहां कुछ ऐसे गैर - मुस्लिम लेखकों का जिक्र कर रहे हैं जिन्होंने आजादी के बाद भी उर्दू की सेवा की। 

पंडित सालिक राम सालिक की सेवाओं का दायरा उपन्यास लेखन था । उन्होंने दो उपन्यास "दास्तान जगत रूप" और "तहफ़ा-ए- सालिक" नाम से लिखे । विभिन्न विषयों पर कुछ महत्वपूर्ण गद्य रचनाओं के अलावा, उन्होंने कविता के कई अच्छे उदाहरण भी छोड़े। इनके अलावा गद्य की इस विधा में प्रयोग करने वाले गैर - मुस्लिम उपन्यासकारों में मोहनलाल मारवाह, विश्वनाथ वर्मा और शंभुनाथ नाज़िर का नाम उल्लेखनीय है । मोहनलाल मारवाह ने "दास्तान मोहब्बत" नामक एक उपन्यास लिखा था जो 1924 में प्रकाशित हुआ था । विश्वनाथ वर्मा ने "द सर्च फॉर ट्रुथ” नामक एक लघु कहानी लिखी । इसी समय पंडित नंद लाल धर ने " ताजियाना - ए - इब्रत" नामक उपन्यास लिखकर उपन्यास लेखन की नींव को मजबूत किया । यह उपन्यास "फसना-ए-आज़ाद" से काफी मिलता-जुलता है ।

स्वतंत्रता के पूर्व उपन्यास लेखन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण नाम प्रेमनाथ परदेसी का है। उन्होंने फिक्शन के अलावा उपन्यास लिखने में भी हाथ आजमाया है । वास्तव में वे एक महान कथाकार थे और साहित्य की इस विधा से उन्हें विशेष लगाव था। वे कथाकार होने के साथ-साथ कवि भी थे। उन्होंने "पूती" नामक उपन्यास लिखा था, लेकिन विभाजन के समय हुए दंगों में यह उपन्यास नष्ट हो गया । ब्रज प्रेमी इसी की ओर इशारा करते हैं और लिखते हैं "उन्होंने (प्रेम नाथ परदेसी) ने "पूती" नामक एक समृद्ध उपन्यास लिखा था । लेकिन विभाजन के दौरान यह नष्ट हो गया और इस तरह हम एक अच्छे उपन्यास के अध्यन से वंचित रह गए।" ( उर्दू अदब की नशो नुमा. पेज - 40 )

रामानंद सागर : रामानंद सागर का जन्म 1917 को लाहौर में हुआ था। रामानंद सागर एक लेखक से ज़्यादा एक निर्देशक और कहानीकार के रूप में अधिक प्रसिद्ध हुए । उन्होंने प्रसिद्ध भारतीय धारावाहिक "रामायण" बनाकर बहुत प्रसिद्धि प्राप्त की। उनकी पहचान एक बेहतरीन फिल्मकार के रूप में भी है। वे लगभग चालीस वर्षों तक सिनेमा से जुड़े रहे। "और मन मुर गया" रामानंद सागर का एक उत्कृष्ट उपन्यास है। यह उपन्यास 1948 में लाहौर से प्रकाशित हुआ था। विभाजन के समय जो त्रासदियां एक व्यक्ति के साथ हुईं, उन स्थितियों को इस उपन्यास में दर्शाया है। इस उपन्यास का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया गया है। इस उपन्यास का अंग्रेजी में अनुवाद पी. टी पांडे ने "द ब्लीडिंग पार्टीशन" शीर्षक से किया । इस उपन्यास की प्रस्तावना उर्दू साहित्य के प्रसिद्ध कथाकार और पत्रकार ख्वाजा अहमद अब्बास ने लिखी है । प्रस्तावना में ख्वाजा अहमद अब्बास ने लिखा है कि रामानंद सागर किसी राजनीतिक उद्देश्य के लिए कलम का उपयोग नहीं करते थे। उन्होंने किसी विचारधारा का प्रतिनिधित्व नहीं किया ।

उनके मुताबिक वह सिर्फ एक इंसान थे और इंसानियत के मरने पर व्यथित हो जाते थे । इसलिए उर्दू उपन्यास के विकास में रामानंद सागर का नाम महत्वपूर्ण है ।

कश्मीरी लाल जाकिर (1919 - 2016 ) : उर्दू कथा साहित्य में एक सम्मानित नाम है । उन्हें साहित्य के इतिहास में एक बहुमुखी व्यक्तित्व के रूप में जाना जाता है। कश्मीरी लाल एक ऐसे लेखक हैं जिन्होंने कथा लेखक, उपन्यासकार, कवि, कार्टूनिस्ट और पत्रकार के रूप में ख्याति प्राप्त की । वे तीन भाषाओं उर्दू, हिन्दी और पंजाबी में एक साथ लिखते थे। कश्मीरी लाल जाकिर ने विभिन्न विधाओं की सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की हैं। इन किताबों में काल्पनिक संग्रह, उपन्यास, नाटक, रेखाचित्र और कविता आदि शामिल हैं। कश्मीरी लाल जाकिर ने उर्दू साहित्य में कई महत्वपूर्ण उपन्यासों का योगदान दिया, जिनमें "सिंदूर की राख", "समुन्दर, सलीब और वह", "अंगूठा निशान", धरती सदा सहगन", "लम्हों में बिखरी जिंदगी", "डूबते सूरज की कथा", "आधी रात का चाँद", "लाल चौक" आदि शामिल हैं। इनमें से अधिकांश उपन्यास गांवों से संबंधित हैं। हालांकि उन पर शहरी जीवन की कुछ छायाएं भी दिखाई गई हैं। उनके उपन्यास लेखन पर टिप्पणी करते हुए अब्दुल मुगनी लिखते हैं, "इन उपन्यासों के विषयों पर दृष्टि डालने से स्पष्ट होता है कि उपन्यासकार अत्यंत संवेदनशील, ज्ञानी और शुभचिंतक इन्सान है। वह अपने समय की परिस्थितियों से पूरी तरह वाकिफ है, इतिहास पर उसकी अच्छी नजर है, वर्तमान समाज की समस्याओं में गहरी दिलचस्पी है और उन्हें हल करने के लिए दृढ़ संकल्पित है । उसे सांस्कृतिक मूल्य बहुत प्रिय हैं। लेकिन ये सभी गुण केवल रोमांटिक भावुकता पर आधारित नहीं हैं, बल्कि उनका स्रोत एक मजबूत यथार्थवाद है, जो एक पोषित आदर्श को महसूस करना चाहता है । यही कारण है कि उपन्यासकार का अपनी भूमि से गहरा लगाव है । वे न केवल गांवों के खुले, स्वच्छ और उज्वल वातावरण का आशिक हैं, बल्कि वे गांवों की समस्याओं से भी वाकिफ हैं ।" (आलमी उर्दू अदब न०, अप्रैल 2009 )।

नरसिंह दास नरगिस : नर सिंह दास नरगिस एक कुशल पत्रकार, कथा लेखक और उपन्यासकार थे। नरसिंह दास ने "निर्मला" और "पार्वती" नामक दो उपन्यास लिखे । कथा साहित्य की तरह उन्होंने सामाजिक मुद्दों को अपने उपन्यासों का विषय बनाया है। उपन्यास पार्वती का मिज़ाज मुंशी प्रेमचंद के उपन्यासों के मिज़ाज से मेल खाता है । जानकी और निर्मला उपन्यासों में दलित और ग्रामीण महिलाओं का चित्रण है । उन्होंने अपने उपन्यासों में समाज को एक समृद्ध तरीके से प्रतिबिंबित किया है। नरगिस ने अपना अधिकांश जीवन गांवों में बिताया है। इसलिए उनके उपन्यासों में ग्रामीण जीवन की झलक दिखती है ।

ठाकुर पूंछी : ठाकुर पूंछी एक प्रसिद्ध कथा लेखक हैं। उनके किस्से पूरे देश में गूंजते थे । ठाकुर पूंछी के उपन्यासों में "वादियां और वीराने, यादों के खंडर, शमा हर रंग जलती है, जुल्फ़ के सर होने तक, उदास तन्हाइयां, चांदनी की साए और प्यासा बादल उल्लेख के लायक हैं । उनके उपन्यासों में न केवल गाँवों बल्कि शहरी जीवन केे विभिन्न पहलुओं को देखा जाता है । 

बानगी के तौर पर हज़ारों नामों में से यह चन्द नाम हैं जिन का यहां उल्लेख किया गया।

(आलेख : राणा समीर)

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