भारतीय संस्कृति में पृथ्वी को माता का दर्जा प्राप्त है। पृथ्वी पर ही जीवन सम्भव है और पृथ्वी पर जीवन का कारण पर्यावरण है। वर्तमान समय में पर्यावरण का संतुलन बहुत तेजी से बिगड़ रहा है। आज बढ़ते प्रदूषण से जलवायु परिवर्तन हो रहे हैं, ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे, भूकम्प, बाढ़, जंगलों में आग जैसी प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही हैं। जीव जंतु की कई प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं। मनुष्य को इन आपदाओं का सामना न करना पड़े, पर्यावरण का संरक्षण हो, पृथ्वी पर मानव जीव जंतु सुरक्षित रहें। इसके लिए अमेरिका में सीनेटर गेलार्ड नेल्सन संघर्ष करके 1970 में 22 अप्रैल को अंतराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस मनाने में सफल हुए। 

विश्व मे लोगों को पृथ्वी दिवस पर विशेष रूप से जागरूक किया जाने लगा। परन्तु आज भी हमारी पृथ्वी खतरे में है। वायु प्रदूषण से आक्सीजन की कमी हो रही है, हवा में धूल, लोहे, प्लास्टिक के कण के साथ कारखानों से निकलने वाली जहरीली गैस और दूषित पानी की मात्रा बढ़ती जा रही है।   

आधुनिकीकरण के परिणामस्वरूप तालाब, कुएं विलुप्त होते जा रहे हैं, नदिया छोटी और सूखती जा रही हैं, जंगल की कटाई हो रही जिससे आज हम लोगों के सामने घटता भू जल स्तर, जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है।  

अब हर व्यक्ति को पर्यावरण संरक्षण के लिए आगे आना होगा। प्रत्येक नागरिक को पौधारोपण कर उसकी देख भाल करनी होगी। एकल उपयोग प्लास्टिक का वहिष्कार  करना, तालाबो कुएं की देखभाल, उसकी सफाई कर पानी के स्रोत को कायम रखना, जल संरक्षण पर विशेष जन जागरूकता अभियान चलाना। वर्षा जन संचयन को बढ़ावा देना और स्वच्छता अभियान चलाना। सरकार की ओर से नदियों में दूषित जल डालने वालों पर सख्ती से करवाई करना चाहिए।

हर विद्यालय में पौधारोपण अनिवार्य कर देना चाहिये। ध्वनि प्रदूषण पर भी नियंत्रन होना चाहिए।                                  

यदि हम अब भी पर्यावरण और पृथ्वी की सुरक्षा  के प्रति जागरूक नही हुए तो हमारा विनाश सुनिश्चित है। पृथ्वी को बचाने के लिए हम सभी को संकल्प लेना चाहिए। जब पृथ्वी सुरक्षित रहेगी तभी हमारा जीवन भी खुशहाल रहेगा।

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