(फोटो साभार : फेसबुक)


भारत के संविधान की प्रस्तावना में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि हमारे देश की एकता और एकजुटता संविधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हमें इस तथ्य का जश्न मनाने की जरूरत है कि भारत वास्तव में दुनिया की लगभग सभी जातियों, धर्मों और संस्कृतियों से मिलकर बना है। दुनिया में ऐसा कोई दूसरा देश नहीं है जिसमें इतनी विविध नस्लें, धर्म, सभ्यताएं और संस्कृतियां हों। आप दुनिया के किसी भी धर्म या जाति का नाम ले लें, ये सभी भारत में मौजूद हैं। 

जवाहरलाल नेहरू अपनी बहुचर्चित पुस्तक डिस्कवरी ऑफ इंडिया के अध्याय 4 के पृष्ठ संख्या 244 में हिंदू-मुस्लिम संस्कृति और भारत-अरब संबंधों का उल्लेख करते हुए लिखते हैं ...

”भारत और अरब जगत के संबंध यात्राओं और कूटनीतिक संबंधों के कारण बढ़े हैं। भारतीय पुस्तकें, विशेषकर गणित और ज्योतिष की पुस्तकें, बगदाद ले जाई गईं और उनका अरबी में अनुवाद किया गया। कई भारतीय चिकित्सक बगदाद गए। ये व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध उत्तर भारत तक ही सीमित नहीं थे। भारत के दक्षिणी राज्यों ने भी उनमें भाग लिया। विशेषकर पश्चिमी तट के लोग भी व्यापार के उद्देश्य से सक्रिय थे।" हमारे लिए यह पहचानना बहुत जरूरी है कि सभी जातियों, धर्मों और संस्कृतियों के लोग भारत आए हैं और यहां बसे हैं और इस देश को अपना माना है। यह इस तथ्य के आधार पर है कि हमारे संविधान निर्माताओं ने भारत के लोगों को हम भारत के लोग के रूप में परिभाषित किया, जिसमें आवश्यक रूप से हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, पारसी, जैन, सिख, यहूदी और सभी धर्म शामिल हैं। सभी सभ्यताएं शामिल हैं ।”

मोटे तौर पर यह माना जाता है कि धर्म आपस में भेदभाव नहीं करते हैं। हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की संस्कृति के मजबूत उदाहरण भारत के भीतर हर जगह देखे जा सकते हैं। ये वो उदाहरण हैं जो हिंदू-मुस्लिम एकता के इतिहास को स्थापित करते हैं। इन उदाहरणों के कारण ही हर जगह हिंदू-मुस्लिम एकता की प्रशंसा होती है। अगर आने वाली पीढ़ियां इन उदाहरणों और भाईचारे के इस रूप को भूल जाती हैं, तो वे खुद को नुकसान पहुंचाएंगे। 

दशहरा, राम लीला और ताज़िया के लिए जिस तरह से गांव के हिंदू और मुस्लिम मंच साझा करते हैं, वह आपसी एकता की मजबूत नींव है। पारस्परिक सहयोग और सामान्य संस्कृति का एक महत्वपूर्ण तत्व हिंदू-मुस्लिम भाईचारा है । 

हिंदू-मुस्लिम एकता वास्तव में भारतीय संस्कृति की भावना को मिलाने और सम्मिश्रण करने की दोहरी प्रक्रिया में बनती है। यह इंटरकल्चरल समझ की अवधारणा के लिए केंद्रीय बिंदु है । इमाम हुसैन पैगंबर मुहम्मद स० के नवासे थे। उन्होंने अपने परिवार और दोस्तों को सत्य और सच्चाई के लिए कुर्बान कर दिया। इस घटना की याद में ताज़िया जुलूस निकले जाते हैं जिसमें न केवल मुस्लिम बल्कि हिंदू भी भाग लेते हैं। इसी तरह, बुजुर्गों के मज़ारात पर मुसलमानों के साथ - साथ बड़ी संख्या में हिंदू भक्त भी जाते हैं। वहीं पंच प्यारों का जुलूस हो या कांवरियों का काफिला, दोनों ही मौकों पर मुसलमान उनके लिए प्याउ लगाते हैं । 

उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले से सटे कथारा गांव में करीब 1600 हिंदू और साढ़े पांच मुसलमान रहते हैं। इस गांव में हर साल राम लीला उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यहां एक बार ऐसा हुआ कि दशहरा के दिन ही मुहर्रम के आशूरा का दिन होने के कारण पुलिस के सामने सुरक्षा को लेकर कई तरह के सवाल उठे। गांव की मुस्लिम आबादी को देखते हुए पुलिस प्रशासन को तरह-तरह की चिंताएं सता रही थी। गाँव की हिंदू मुस्लिम आबादी भी संदेह में थी, क्योंकि सभी को अपने-अपने त्योहार मनाने थे। दशहरा राम लीला कमेटी के सदस्य अनिरुद्ध सिंह का कहना है कि उनके गांव में मुहर्रम और राम लीला का आयोजन होना था। ग्रामीणों से सद्भाव बनाए रखने की अपेक्षा की गई थी। हालांकि यह कैसे संभव हो इसको लेकर गांव के लोग परेशान थे। मामले को सुलझाने के लिए नजदीकी थाने में शांति समिति की बैठक बुलाई गई। इस बैठक में मुहम्मद तस्लीम, हलीम, दिलदार खान, आरिफ, बलविंदर सिंह राठौर, कमल सिंह, अनिरुद्ध सिंह व अजय गुप्ता आदि ने भाग लिया। पुलिस ने सुरक्षा का मुद्दा उठाया और रामलीला और मुहर्रम के दौरान शांति बनाए रखने के लिए प्रस्ताव पेश करने को कहा ताकि दोनों संप्रदाय के लोग आसानी से अपने-अपने त्योहार मना सकें। इसके बाद गांव वालों ने भाईचारे की नई मिसाल कायम करने का फैसला किया। तय हुआ कि इस बार मंच पर ताज़िया रखने के बाद रामलीला शुरू की जाएगी। इस फैसले से पुलिस अधिकारी अवाक रह गए, लेकिन जब हिंदू और मुसलमानों के प्रतिनिधियों ने इस पर सहमति जताई तो पुलिस ने भी इस तरह से त्योहार मनाने की इजाजत दे दी । रामलीला को मंचित करने से पहले गांव के मुसलमान ताज़िया लेकर पहुंचे और हिंदुओं ने उनका स्वागत किया उसके बाद रामलीला के मंच पर ताज़िया रखी गई, फिर मंच पर उसके बाद रामलीला शुरू हुई। हिंदू और मुस्लिम दोनों ने एक-दूसरे को गले लगाया और अपने-अपने त्योहारों को सम्मान और आदर के साथ मनाया । 

हिंदू-मुस्लिम एकता की सबसे ज्वलंत मिसाल त्योहारों में ही देखने को मिलती है। त्यौहार आमतौर पर वर्ष की निश्चित तिथियों पर आयोजित किए जाते हैं। इस दिन सभी एक साथ इकट्ठा होते हैं और खास अंदाज में खुशी जाहिर करते हैं, एक दूसरे को बधाई देते हैं । इस प्रकार, त्योहार लोगों के बीच समुदाय और एकता बनाने में मदद करता है। यह समाज के एक वर्ग को दूसरे वर्ग के करीब लाता है। त्यौहार मिलन और जुड़ाव का एक मजबूत और स्थायी आधार प्रदान करने का एक माध्यम हैं । 

त्योहार का एक हिस्सा आमतौर पर एक विशेष सामाजिक समूह की अपनी मान्यताओं और अपने इतिहास से संबंधित होता है। और एक हिस्सा सामान्य है जो पूरे मानव समाज का है । उदाहरण के लिए, ईद में दोगाना नमाज़ का संबंध मुस्लिम आस्था से है, यह मुस्लिम धर्म का हिस्सा है, लेकिन ईद पर मिठाई, सेवैंयां खाना और खिलाना एक ऐसी चीज है जिस का संबंध सभी इंसानों से है । यह प्रक्रिया मानवीय स्तर पर संपर्क को बढ़ावा देती है । यह एक वैश्विक चीज है न कि किसी समूह की चीज । इसी तरह दीवाली में लक्ष्मी की पूजा करना हिंदू धर्म से संबंधित है । यह हिंदू धर्म का एक हिस्सा है लेकिन घर की सफाई एक ऐसी चीज है जिसमें हर आदमी की बहुत रुचि होती है । इसे हर आदमी खुशी-खुशी अपना सकता है। इस तरह, मुसलमानों ने हिंदू त्योहारों में दिलचस्पी दिखाई और हिंदुओं ने मुस्लिम त्योहारों में दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी। 

सर सैयद ने 27 जनवरी 1883 को अपने एक भाषण में कहा था- 

"हिंदू या मुसलमान होना व्यक्ति का आंतरिक विचार या विश्वास है, जिसका बाहरी मामलों और व्यवहार से कोई लेना-देना नहीं है । भारत हम दोनों की मातृभूमि है। हम दोनों भारत की हवा से जीते हैं। हम दोनों गंगा और यमुना का पवित्र जल पीते हैं। भारत की धरती की उपज हम दोनों खाते हैं। मरने में, जीने में दोनों साथ हैं । वास्तव में, भारत में हम दोनों को एक क़ौम माना जाता है । और हम दोनों की सहमति और आपसी सहानुभूति और आपसी प्रेम से देश का और हम दोनों का विकास और समृद्धि संभव है । और एक दूसरे के प्रति पाखंड और द्वेष से हम दोनों बर्बाद होने वाले हैं ।" 

फिर यही वह भारत है जिसका बखान इकबाल ने अपनी कविताओं में किया है । उनकी सर्वश्रेष्ठ कविता इस सामान्य भावना को दर्शाती है जिसे भारत में लगभग सभी ने सुना है और अनगिनत लोगों ने गाया है...

सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा 

हम बुलबुले हैं उसकी, यह गुलसितां हमारा 

ऐसा सामान्य वातावरण और एकता का वातावरण बनाने में त्योहारों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है । हकीकत यह है कि त्योहार नफरत और आपसी दूरी को खत्म करते हैं। अगर त्योहारों को सही भावना और से मनाया जाए तो हमारे समाज से हर तरह की कुरीतियां हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगी। त्योहार, अगर सही तरीके से मनाया जाता है, निस्संदेह सहिष्णुता, एकता और एकजुटता पैदा करने का एक साधन है। वह पूरे समाज को एक आम मानवीय रिश्ते में जोड़ता है और एकधर्मी समाज बनाता है । और सदाचारी समाज से उत्पन्न परिणाम का दूसरा नाम एकता है ।

आलेख : मोहम्मद राशिद खान 

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