उर्दू की बुनियाद हिन्दुस्तान में है उर्दू को हिंदी की बहन कहते हैं देशवासी।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैयद अहमद खां से लेकर पाकिस्तान जाकर बसे अल्लामा इकबाल, जोश मलिहाबादी, मशहूर शायर बिशन सिंह 'बेदी', जगजीत सिंह, लेखक गुलजार वह कई अन्य उर्दू भाषाई पहले भारतीय ही थे 1947 में पाकिस्तान बनने के बाद हिन्दुस्तान की उर्दू भाषा को पाकिस्तान ने अपनाया।

"सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा" जैसा तराना लिखने वाले उर्दू के शायर अल्लामा इकबाल बंटवारे के बाद गए थे पाकिस्तान ।

उर्दू ज़ुबान (भाषा) हिंदुस्तान में परवान चढ़ी और पड़ोसी देश पाकिस्तान के जन्म से पहले हिंदुस्तान में हिंदी उर्दू पंजाबी पश्तो आदि भाषाएं लिखने पढ़ने और बोलने के प्रचलन में रही हैं। जो बाद में पाकिस्तान की सरकारी भाषा के तौर पर जानी गई। लेकिन उर्दू की 'नाल' कहे तो वह भारत में गड़ी है।

ईरान, इराक, सऊदी अरब समेत किसी भी इस्लामिक देश में वहां की अधिकारिक भाषा उर्दू न होकर अरबी है, लेकिन भारत में मुसलमानों के साथ-साथ सिख, हिंदू, ईसाई भी अंग्रेजी, हिंदी, पंजाबी के साथ-साथ उर्दू बोलते व जानते रहे हैं। "सारे जहां से अच्छा हिंन्दोस्तां हमारा" जैसा प्रसिद्ध तराना लिखने वाले प्रसिद्ध 'जोश मलिहाबादी' अल्लामा इकबाल उर्दू के नामवर शायरों में जाने जाते थे, जो बाद में पाकिस्तान चले गए।

देश की प्रसिद्ध 'अलीगढ़ यूनिवर्सिटी" के संस्थापक सर सैयद अहमद खान उर्दू भाषी थे और हिंदुस्तानी भाषाओं के साथ-साथ उर्दू ही बोलते थे। इसी प्रकार सिख लोग पंजाबी भाषा के साथ-साथ उर्दू भी बोलने और लिखने में इस्तेमाल करते थे। हिंदुस्तान में बंटवारे के पहले से ही उर्दू भाषा लिखने और बोलने में प्रचलन में थी। हिंदी भाषा के शब्द हमेशा से उर्दू के साथ मिलाकर ही बोले जाते रहे हैं, इसी कारण हिंदी को उर्दू की बहिन भी कहा जाता रहा है।

उर्दू भाषा का विकास 711 में सिन्ध के मुस्लिम विजय के साथ शुरू हुआ। उर्दू दिल्ली सल्तनत (1206 - 1526) और मुगल साम्राज्य (1526 -1858) के दौरान अधिक निर्णायक रूप में विकसित हुई। जब दिल्ली सल्तनत कितने डेक्कन पठार पर दक्षिण मे विस्तार किया तो साहित्यिक भाषा दक्षिण में बोली जाने वाली भाषाओं से प्रभावित हुई।

विखंडन से पहले जब भारत और पाकिस्तान एक देश थे, तब लगभग दो शताब्दियों में पहले दुनिया के पहले निगमों में से एक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा ब्रिटिश नियंत्रित प्रदेशों के दौरान इन शासकों ने उर्दू को अपनी भाषाओं में से एक के रूप में प्रचलित किया।

उर्दू हिंदुस्तान की जुबान है न इरान - इराक की और ना ही सऊदी अरब की। जो मुसलमान हिंदुस्तान से बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गए वह भी उर्दू को भारत से ही लेकर गए थे। वह भी जाने के पहले से ही उर्दू जुबान के साथ पंजाबी भाषा हीआर बोलते लिखते और पढ़ते थे। मुसलमानों के साथ-साथ हिंदू भी उर्दू बोलते थे, जिसे यहां के लोग भारत के हिस्से में हिंदुस्तानी जुबान ही समझते हैं।

उर्दू को भारत में भी राज भाषा का दर्जा प्राप्त है और इस भाषा की तरक्की के लिए देश में 'उर्दू अकादमी' जैसी संस्थाएं भी भाषा को बढ़ावा देने का कार्य कर रही है। देश में अनगिनत शायर, लेखक, फिल्मकार, कई सरकारी विभाग आज भी उर्दू भाषा का इस्तेमाल करते आ रहे हैं।

उर्दू के महान शायरों में 'जिगर मुरादाबादी'  मरहूम गजल गायक 'जगजीत सिंह, मोहम्मद रफी साहब, मशहूर लेखक / कवि गुलजार, फिल्म निर्देशक महेश भट्ट आदि लोग उर्दू के अच्छे जानकारों में से रहे हैं।

2010 के आंकड़ों की मानें तो उर्दू विश्व में बोली जाने वाली पहली भाषाओं में 21वें स्थान पर है। उर्दू भाषा में अन्य भाषाओं का मेल होने से यह भाषा स्थानीयकृत हो गई है, यहां तक कि पाकिस्तान की उर्दू भाषा में भी इसका प्रभाव देखने को मिलता है ।

आधुनिक उर्दू पाकिस्तान की राष्ट्रीय भाषा है और भारत में भी कई करोड़ लोगों द्वारा बोली जाती है। उर्दू भारत के संविधान के अनुसार मान्यता प्राप्त 22 भाषाओं में से एक है, जो कि भारत के 6 राज्यों की राजभाषा के रूप में प्रयोग होती है जैसे जम्मू - कश्मीर, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल। उर्दू भारत की राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में भी बोली जाने वाली एक भाषा है, यह नेपाल की एक पंजीकृत क्षेत्रीय भाषा है। भारत में उर्दू करोड़ों लोगों द्वारा कई जगहों पर बोली जाती है जो कि अतीत में मुस्लिम साम्राज्य थे। इनमें कई शहर -जैसे मेरठ, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, आजमगढ़, बिजनौर, रामपुर, अलीगढ़, इलाहाबाद, गोरखपुर, भोपाल, औरंगाबाद, बेंगलुरु, कोलकाता, अजमेर और अहमदाबाद में भी उर्दू भाषा बोली जाती है। कुछ भारतीय स्कूल उर्दू को पहली भाषा के रूप में पढ़ाते हैं और उनकी अपनी पाठ्यक्रम और परीक्षाएं होती है।

(आलेख :अहरारुल हुदा शम्स)

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