विचारधाराओं की लड़ाई हमेशा से हर युग में रही है और हर युग में विचारधारा जितनी मजबूत और ताकतवर हुई, उसका उतना ही जोरदार विरोध किया गया । मैं अपने दावे के समर्थन में मिर्जा गालिब का शेर पेश कर रहा हूं।

ईमां मुझे रोके है तो खींचे है मुझे कफ्र ।

काबा मेरे पीछे हैं कलीसा मेरे आगे ।।

काबा और चर्च वास्तव में काबा और चर्च नहीं है, बल्कि दो सभ्यताओं के प्रतीक हैं । काबा पूर्वी सभ्यता और कलीसा पश्चिमी सभ्यता का प्रतीक है और हर मजबूत सभ्यता का कमजोर सभ्यता पर हावी होने का प्रभाव होता है । कश्मीरियों को आंतकवाद कभी पसंद नहीं आया । इस विषय पर चर्चा करने से पहले यह चर्चा करना अधिक उचित प्रतीत होता है कि कश्मीरवाद क्या है ।

कश्मीर वाद क्या है जब हम इसके बारे में सोचते हैं , प्राचीन काल से काशी और कश्मीर दोनों अपनी परंपरा के लिए प्रसिद्ध थे । जाति और वर्ग के बावजूद काशी ज्ञान का शहर बन गया ।काशी की तरह कश्मीर भी प्राचीन काल में अपने ज्ञान के कारण प्रसिद्ध हुआ । बहुत से लोग शायद नहीं जानते होंगे कि आज भी काशी और अन्य शहरों में बच्चों के लिए बिस्मिल्लाह के समय या उनकी शिक्षा की शुरुआत के समय प्रतीकात्मक रूप से कश्मीर की और सात कदम चलने का रिवाज है । इसका मतलब है कि काशी के ज्ञान की परंपरा कश्मीर पहुंचे बिना पूरी नहीं हो सकती ।

इतिहासकार अबू रेहान मुहम्मद बिन अहमद अल - बैरूनी, जो एक गणितज्ञ और वनस्पतिशास्त्री थे, वह एक भाषाविद थे । उन्होंने लिखा है कि कश्मीर हिंदू धर्म की सबसे बड़ी पाठशाला है । कहा जाता है कि मुगल बादशाह शाहजहां के सबसे बड़े बेटे दारा शिकोह ने संस्कृत सीखने के लिए कश्मीर की यात्रा की थी । विश्व प्रसिद्ध संस्कृत पुस्तक राज तंरगानी हजारों वर्षों से पहले भारत के धर्म दर्शन और संस्कृति पर आधिकारिक, ऐतिहासिक पुस्तक है । इसमें सदियों से एक के बाद एक कई बुद्धिजीवियों ने कश्मीर की घटनाओं को दर्ज किया है ।

कश्मीर के ऐतिहासिक स्रोत, महाराजा येदुराष्ट्र के शासन काल के हैं, अर्थात कश्मीर का प्राचीन इतिहास महाभारत के साथ साथ कदम से कदम मिलाकर चलता प्रतीत होता है । काशी की तरह, कश्मीर में भी सभी क्षेत्रों और वर्गों के लोग बाहर से आए हैं और बस गए हैं । कश्मीर में सिर्फ ब्राह्मण यानी पंडित ही नहीं, बल्कि हर वर्ग के लोग हैं, लेकिन जब कश्मीर का जिक्र आता है तो कश्मीरी पंडितों का जिक्र आना लाजमी हो जाता है ।

कश्मीरवाद के गौरवशाली और उज्जवल पहलुओं में से एक यह है कि इसने छोटे और उच्च, अमीर और गरीब को धार्मिक प्रतिबंधों से भी मुक्त कर दिया है और वंश को कश्मीरवाद नामक समूह बना दिया है ।

शिव दर्शन की रोशनी इसी धरती से आई, इसलिए कश्मीर की व्यक्तिगत पहचान पंडित बन गई ।पंडित शब्द वास्तव में कश्मीरी है । कश्मीरी पंडित अपने अस्तित्व के लिए राष्ट्रवाद को सीने पर लेकर लड़ते नजर आते हैं, वहीं दूसरी तरफ आंतकवादी आंतकी घटनाओं के जरिए उनकी हिम्मत तोड़ना चाहते हैं, लेकिन कश्मीरी पंडित बड़ी बहादुरी से हालात से लड़ रहे हैं । यदि कश्मीरवाद की भावना को बचाना है तो कश्मीरी पंडितों की रक्षा करना अनिवार्य है ।       

यह तो हुआ कश्मीर का प्राचीन इतिहास । अब बात करते हैं उस समय के कश्मीरियों के बारे में । वर्तमान कश्मीरवाद हिंदू - मुस्लिम एकता के पाठ से सुशोभित है । कश्मीरी मुसलमान हमेशा से चाहते हैं कि कश्मीरी पंडित घाटी छोड़कर कहीं ना जाएं । कश्मीरी मुसलमान हमेशा कश्मीरी पंडितों की खैरियत पूछते हैं । ऐसी खबरें अक्सर अखबारों को शोभा देती हैं ।

बहुत से कश्मीरी पंडित जिन्होंने कश्मीर छोड़ने का इरादा किया उन्हें कश्मीरी मुसलमानों ने सुरक्षा दी और जी जान से उनकी सेवा की । कुछ खबरें ऐसी भी हैं कुछ उमरदराज कश्मीरियों ने अपना वतन छोड़ने से इनकार किया । उनकी मुसलमानों में खबर गिरी की और जब उनकी मौत हो गई तो उनकी रीति रिवाज के अनुसार उनका क्रियाक्रम किया ।       

आंतकवादी कश्मीर वाद की इस भावना से नफरत करते हैं क्योंकि अलगाववादियों को इस तरह के प्यार और सहानुभूति से नफरत है । इसलिए उन्होंने कश्मीरी पंडितों को उनके उत्पीड़न के लिए निशाना बनाना शुरू कर दिया और मानवता को शर्मसार करने वाले अत्याचार किए । लेकिन कश्मीर राज्य के वर्तमान उपराज्यपाल मनोज सिन्हा बड़ी मेहनत से आपसी नफरत पर काबू पाने में कामयाब रहे और आज घाटी में समग्र शांति है । बाजार खुले हैं । शिक्षण संस्थानों में शैक्षणिक गतिविधियां चल रही हैं । सेब के बागों में सामान्य पर्यटक पहुंच रहे हैं जबकि 370 के अंत से पहले, देश के अन्य हिस्सों के पर्यटकों के लिए दूरस्थ सेब के बाग दुर्गम थे ।

आपने सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियोज़ देखे होंगे जिनमें मातृभूमि छोड़कर अपने घरों को वापस आने वाली महिलाओं का अपने सुनसान घरों में देखने आए कश्मीरी पंडितों का पड़ोसी मुसलमानों ने आंखों में आंसू लेकर गर्मजोशी से स्वागत किया । यह नजारा ही दिखाता है कि कश्मीर घाटी में अभी भी इंसानियत जिंदा है और जब तक कश्मीर वाद जिंदा है, आतंकियों के इरादे कामयाब नहीं होंगे ।।

आज जायरीन- ए- हज का काफिला विभिन्न राज्यों में हज कर देश पहुंच रहा है । इसी सिलसिले में कश्मीरी मुसलमान भी हज कर घाटी में पहुंच रहे हैं । मैंने सोशल मीडिया पर एक वीडियो भी देखा है जिसमें कश्मीरी पंडित कश्मीरी भाषा में "नात" ( मोहम्मद साहब की तारीफ ) पढ़कर मुसलमानों और तीर्थ यात्रियों का स्वागत कर रहे हैं । इस भावपूर्ण दृश्य को देखकर लगा कि घाटी में कश्मीरवाद जिंदा है । इस पूरे परिदृश्य को देखते हुए माना जा सकता है कि जब तक कश्मीरी जिंदा रहेंगे तब तक आतंकवादी और अलगाववादी अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो सकते । यदि कश्मीर वाद जीवित रहा तो घाटी में जन्नत नजीर की पुरानी गरिमा और और विश्वसनीयता बहाल हो जाएगी । मैं "कैसर शमीम" की निम्नलिखित कविता के साथ अपनी बात समाप्त करता हूं ।

मेरा मज़हब इश्क का मज़हब जिसमें कोई तफ्ऱीक नहीं ।

मेरे हल्के में आते हैं तुलसी भी और जामी भी ।।

(आलेख : आस्करण सिंह)

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