जय श्री राधे कृष्णा 🌹🙏🏻


मित्रों आज का श्लोक मैंने श्रीमद्भगवद्गीता के चौथे अध्याय 'ज्ञानकर्मसंन्यासयोग' से लिया है। 


यदृच्छालाभसंतुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः।

समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते॥

(अध्याय 4, श्लोक 22)


इस श्लोक का अर्थ है : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं) जो स्वतः प्राप्त वस्तु से संतुष्ट, द्वंद्वों (हर्ष-शोक आदि) से अतीत,  ईर्ष्या रहित और सफलता- असफलता में समान रहने वाला हो, वह कर्मों को करता हुआ भी उनसे नहीं बँधता।


सुप्रभात ! 


पुनीत कुमार माथुर 

ग़ाज़ियाबाद

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