भारत आज 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है। पूरे विश्व में हमारे देश का मान बढ़ा है। दुनिया अब यह महसूस कर रही है कि वह दिन दूर नहीं जब भारत शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में से एक होगा। इसका कारण यहां का सौहार्द और विभिन्न वर्गों के बीच आपसी प्रेम और एकजुटता है। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में व्यापार सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और व्यापार तभी फलता-फूलता है जब विभिन्न वर्गों के बीच सामंजस्य और सद्भाव हो । 

आज यदि भारत में व्यापार फल-फूल रहा है और देश की अर्थव्यवस्था को तेजी से आगे बढ़ा रहा है, तो इसका कारण व्यापार क्षेत्र में विभिन्न वर्गों के बीच सद्भाव और आपसी सहयोग ही है, जो भारत की गंगा-जमनी सभ्यता को दर्शाता है। गंगा जमनी सभ्यता की ये परंपरा हमारे देश में बहुत पुरानी है । भारत एक ऐसा देश है जहां सदियों से विभिन्न धर्मों के अनुयायी रहते आ रहे हैं। भारत पूरी दुनिया में विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के बीच एकता और सद्भाव के लिए पहचाना जाता है। 

ऐसा नहीं है कि इस एकता और सद्भाव को तोड़ने की कोशिश नहीं की गई है, लेकिन जिन्होंने भी ऐसा करने की कोशिश की है उन्हें हमेशा मुंह की खानी पड़ी। प्रसिद्ध विद्वान मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने इस संबंध में बहुत यथार्थवादी विश्लेषण किया है। वह एक जगह लिखते हैं कि "भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान जब स्वतंत्रता संग्राम शुरू हुआ तो मुसलमानों और हिन्दुवों ने एक साथ इस युद्ध भाग लिया। हालाँकि ब्रिटिश षडयंत्रों के कारण कभी-कभी इस स्थिति में बदलाव आया और हिंदू - मुस्लिम दंगे भी हुए, लेकिन कुल मिलाकर एकता का यह माहौल 1947 तक काफी हद तक बना रहा । मातृभूमि दो भागों में विभाजित हो गई, यह एक बड़ी त्रासदी थी, आज़ादी के प्रसिद्ध मुजाहिदीन मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने आज़ादी के बजाय हिंदू - मुस्लिम एकता को प्राथमिकता दी, लेकिन ऐसे देशभक्त लोगों की बात लोगों ने नहीं सुनी और कुछ जुनूनी नेताओं ने देश को दो हिस्सों में बांट दिया, हिंदू-मुस्लिम एकता का शीशमहल भी ढहने लगा, इंसानों का खून इतनी अधिक मात्रा में बहने लगा कि अगर उन्हें किसी खाई में फेंक दिया जाता तो शायद सचमुच खून की नदी बह गई होती, और कुछ जगहों पर सचमुच ऐसा हुआ कि इस आबादी में बहने वाली नदी का पानी लाल हो गया। इस रक्तपात के बाद देशभक्त नेताओं ने टूटे दिलों को जोड़ने का प्रयास किया और धीरे-धीरे घाव भरने लगे।" 

यह देखने के लिए कि भारत के साझा मूल्यों की जड़ें कितनी गहरी हैं, दो महान भारतीय सपूत, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैयद अहमद खान और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय की शिक्षाओं को देखना उपयोगी है। ये वे महान लोग थे जिन्होंने दुनिया को धर्म के चश्मे से नहीं देखा, व्यापक सोच और दृढ़ विश्वास उनके सिद्धांत थे जो लोगों को बांटने के बजाय एकजुट करते थे। 

पंडित मालवीय ने कहा कि भारत केवल हिंदुओं का नहीं, बल्कि यह मुसलमानों, ईसाइयों और पारसियों का भी देश है। यह देश तभी मजबूत हो सकता है और विकास के रासते पर जा सकता है जब पूरे देश के सभी निवासी भाईचारे और प्रेम से रहें। 

सर सैयद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से स्नातक करने वालों से कहा करते थे कि पूरी धरती पर फैल जाओ और नैतिकता, सहिष्णुता और आपसी भाईचारा की शिक्षा फैलाओ। हालाँकि सर सैयद और मालवीय के बीच कोई धार्मिक रिश्ता नहीं था, लेकिन यह बिना किसी संदेह के कहा जा सकता है कि उनके बीच आध्यात्मिक रिश्ता था । यह भी कहा जा सकता है कि उनकी आत्माएँ एक-दूसरे की मित्र थीं । 

भारत में धार्मिक सद्भाव का आधार कितना मजबूत है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश के विभाजन का सदमा भी इसकी नींव को नहीं हिला सका और आज़ादी के बाद अलग–अलग जगहों पर हुए सैकड़ों दंगे भी इस एकता को नहीं हिला सके । धार्मिक सद्भाव और आपसी एकता भारतीय लोगों के खून में है। इस एकता को बनाए रखने और बढ़ावा देने में राजनीतिक दल और स्वयंसेवी संगठन भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। विशेषकर स्वयंसेवी संस्थाओं की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। भारत भर में ऐसे कई गैर सरकारी संगठन हैं जो मानवीय आधार पर लोगों की सेवा करने में लगे हुए हैं और प्रभावी तरीके से यह संदेश दे रहे हैं कि सभी इंसान भाई-भाई हैं। 

इस शृंखला में संत निरंकारी मिशन और ऑल इंडिया पयामे इंसानिया फोरम का विशेष रूप से उल्लेख किया जा सकता है जिनका मिशन मानवता और भाईचारे का संदेश फैलाना है। संत निरकारी मिशन मानव कल्याण के लिए समर्पित एक संगठन है जो व्यापक स्तर पर कार्य करता है । इसकी शुरुआत 1929 में बाबा बूटा सिंह ने पेशावर में की थी । इसकी स्थापना 1948 में देश के विभाजन के बाद भारत में की गई थी । यह मिशन भारत सहित विभिन्न देशों में सक्रिय है । भारत में इसके 3000 केंद्र हैं और लाखों लोग इस मिशन से जुड़े हुए हैं। 

अखिल भारतीय पयाम इंसानियत फोरम की स्थापना 70 के दशक में प्रसिद्ध विद्वान मौलाना सैयद अबुल हसन अली नदवी ने भेदभाव के बिना मानव सेवा और प्रेम का संदेश फैलाने के उद्देश्य से की थी, जिस पर संगठन अपने अस्तित्व के बाद से सक्रिय रूप से काम कर रहा है। पहले इस संगठन के तहत सार्वजनिक बैठकें करके मानवीय संदेश को प्रचारित किया जाता था, लेकिन अब यह संगठन जगह-जगह बैठकों और सम्मेलनों के साथ - साथ अन्य मानवीय सेवाएं भी प्रदान कर रहा है। किसी आपदा की स्थिति में संगठन राहत कार्य करता है। बाढ़ प्रभावित इलाकों में लोगों में बड़े पैमाने पर खाना, कपड़े और अन्य सामान बांटता है। 

कोरोना काल में भी संस्था ने लोगों की खूब मदद की । खाद्य सामग्री वितरण के साथ-साथ लोगों को दवा किट भी उपलब्ध करायी गयी । टीकाकरण राष्ट्र शिविर लगाने में भी अहम भूमिका निभाई। दो संगठनों के नाम तो केवल उदाहरण हैं, वरना देश में ऐसे अनगिनत संगठन हैं जिनका मिशन धार्मिक सद्भाव कायम करना और एकता का संदेश फैलाना है। कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन के मौके पर इसका नमूना हर जगह देखने को मिला। ऐसे समय में जब लोग, विशेषकर वे जो अपने घरों से दूर बड़े शहरों में रहकर अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे, भूख से मरने को मजबूर थे। ऐसे में प्रबंधन करना सरकारों के लिए एक चुनौती बन गया। भारत की राष्ट्रीय एकता और परोपकार की इस अवधि में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। 

न केवल स्वयंसेवी संस्थाओं ने बल्कि व्यक्तिगत रूप से भी लोगों ने अभूतपूर्व तरीके से संकटग्रस्त लोगों की सुधि ली। वाहन और बसें बंद होने के कारण लोग साइकिल, मोटरसाइकिल, ट्रकों से अपने गंतव्य की ओर निकल पडे और जिनके पास परिवहन का कोई साधन नहीं थी वे पैदल ही अपने गंतव्य की ओर चल पडे । लोगों की चप्पलें तक टूट गईं, वे भूखे-प्यासे चलते रहे । ऐसे कठिन समय में पूरी दुनिया ने भारत में निहित राष्ट्रीय एकता और धार्मिक सद्भाव के सुखद दृश्य देखे। लोग हर राजमार्ग पर भोजन, फलों के पैकेट लेकर खड़े होते थे और हर आने वाले को देते थे। जिनके पैरों में चप्पल नहीं थी उन्हें चप्पल उपलब्ध करायी गयी । 

एकता, सद्भाव और सहिष्णुता भारत के मूल में समाहित है। इसका उदाहरण जीवन के हर क्षेत्र में देखा जा सकता है। विपत्तियों और कष्टों के समय लोगों की मदद के लिए आगे बढ़ने की भावना हमें हर कदम पर देखने को मिलती है और इसी भावना के कारण भारत का पूरे विश्व में एक विशिष्ट स्थान है। वाणिज्य के क्षेत्र में भी यही भावना काम करती है । इस भावना की झलक हम क्षेत्र में देखने को मिलती है । गाँव और मोहल्ले की दुकानों से लेकर बड़े बाज़ारों तक व्यपार के हर क्षेत्र में इस की झलक देख सकते हैं। दुकान किसी की भी हो, खरीदार हर वर्ग के हैं। त्योहारों के अवसर पर तो यह भावना और भी मुखर हो जाती है। होली और दिवाली के अवसर पर रंगों और पटाखों की बड़ी संख्या में दुकानें मुसलमानों की होती हैं, जबकि ईद के अवसर पर, हिंदू दुकानों पर मुस्लिम खरीदारों की भीड़ होती है। इस गंगा - जैसी सभ्यता को हम किसी भी गांव, कस्बे और शहर की दुकानों में देख सकते हैं । 

(आलेख : रमन चौधरी)

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