🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏 


मित्रों आज के ये दो श्लोक  श्रीमद्भगवद्गीता के अट्ठारहवें अध्याय 'मोक्षसंन्यासयोग से ..


त्याज्यं दोषवदित्येके कर्म प्राहुर्मनीषिणः ।

यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यमिति चापरे ॥

(अध्याय 18, श्लोक 3)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्णा बोले)- कुछ मनीषी कहते हैं कि सभी कर्म दोषयुक्त हैं, इसलिए त्यागने योग्य हैं और दूसरे कहते हैं कि यज्ञ, दान और तप रूपी कर्म त्यागने योग्य नहीं हैं।


निश्चयं शृणु मे तत्र त्यागे भरतसत्तम ।

त्यागो हि पुरुषव्याघ्र त्रिविधः संप्रकीर्तितः ॥

(अध्याय 18, श्लोक 4)


इस श्लोक का भावार्थ : (श्री भगवान कहते हैं) - हे भरतश्रेष्ठ अर्जुन! इस विषय में त्याग के सम्बन्ध में मेरा निश्चय सुनो। हे सिंह पुरुष त्याग तीन ( सात्विक, राजस और तामस ) प्रकार का कहा गया है।


शुभ दिन ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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